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तोको पीव मिलैंगे घूँघट के पट खोल रे

यहां भी पधारें : Videos 2:41 Ghoonghat Ke Pat Khol Re Tohe - Jogan 1950 - Geeta Dutt YouTube  ·  Suhanee Lall 2 minutes, 41 seconds 14-Jul-2012 (१ ) Videos 28:34 कबीर : घूँघट के पट खोल YouTube  ·  CEC 28 minutes, 34 seconds 24-Aug-2020 (१ )https://www.youtube.com/watch?v=ar5lHsWN3Fg तुमको  प्रीतम  मिलेंगे,  अपने  घूँघट  के  पट  खोल  दे।  हर  शरीर  में  वही  एक  मालिक  आबाद  है।  किसी  के  लिए  कड़वा  बोल  क्यों  बोलता  है।  धन  और  यौवन  पर  अभिमान  मत  कर  क्योंकि  यह  पाँच  रंग  का  चोला  झूठा  है।  शून्य  के  महल  में  चिराग़  जला  और  उम्मीद  का  दामन  हाथ  से  मत  छोड़।  अपने  योग  के  जतन  से  तुझे  रंगमहल  में  अनमोल  प्रीतम  मिलेगा।  कबीर  कहते  हैं  कि  अनहद  का  साज़  बज  रहा  है  और  चारों  ओर  आनंद  ही  आनंद  है। तोको पीव मिलैंगे घूँघट के पट खोल रे। घट घट में वही साँई रमता, कटुक बचन मत बोल रे। धन जोबन को गरब न कीजै, झूठा पँचरंग चोल रे। सुन्न महल में दियरा बार ले, आसा सों मत डोल रे। जोग जुगत से रंग-महल में, पिय पाई अनमोल रे। कहैं कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल
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लेकिन आदमी की आँख भी गज़ब कर देती है। पति की तो और भी ज्यादा देख लेती है। यही है पैरानोइया पैरानॉयड बिहेवियर सोशल शिज़ोफ्रेनिया।

कृपया यहां भी पधारें : (१) Lajwanti - Wikipedia (२) Lajwanti (1958) - Lajwanti (1958) - User Reviews - IMDb इस जमाने को प्रेम अच्छा लगता है  ना प्रेमी। स्त्री -पुरुष संबंधों की अपनी ही भाव छवि बनाये बैठा है ज़माना।इसी  बनी  बनाई मन गढंत  छवि का शिकार बनती हैं " लाजवंती  "की नायिका कविता (अदाकारा नरगिश ). पति एक नामीगिरामी एडवोकेट हैं वकालत में पूरी तरह गुम। पत्नी टुकुर टुकुर उनकी बाट जोहा करती है। विशेष और आम दिनों में भी कोई निश्चय नहीं रहता उनके आने का।  इसी दरमियान यूरोप से उनके मित्र लौटते हैं एक बेहद ज़िंदादिल इंसान सच्चे सीधे दोस्त हैं सुनील ज़माना उनके और कविता के किरदार का अफ़साना बना देता है। बस उनका कुसूर इतना है वह अपनी भाभी साहिबा का पोर्ट्रेटिएट(एक व्यक्ति चित्र )बनाकर अपने दोस्त निर्मल की आने वाली विवाह की सालगिरह पर  सौंपना चाहता है ताकि उसे निर्मल के  वैयक्तिक चित्र के साथ सज्जित किया जा सके। इसी आशय को मूर्त रूप देने के लिए सुनील के घर कविता के सब्जिक्ट के बतौर बैठकें होने  लगती हैं। कविता की अपनी भाभी ही  शक़ के बीज को उर्वरा ज़मीन देकर  निर्मल के  दिलोदीवार में