हमारे पुराणों में अक्सर कहानियों किस्सों ,कथाओं के माध्यम से आम औ ख़ास को सन्देश दिया गया है। राजा रंति देव की कथा आती है
हिंदुत्व में सेवा भाव की अवधारणा "सर्वे भवन्तु सुखिन : सर्वे भवन्तु निरामया : सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत। " अर्थात सब सुखी हो ,सब आरोग्यवान हों ,सब सुख को पहचान सकें ,कोई भी प्राणि किसी बिध दुखी न हो। May all be happy ;May all be without disease ; May all see auspicious things ; May none have misery of any sort. सनातन धर्म (हिंदुत्व ) सेवा को सबसे बड़ा धर्म मानता है। परहित सरिस धर्म नहीं भाई। परपीड़ा सम नहीं, अधमाई।। सेवा यहां एक सर्व -मान्य सिद्धांत है।मनुष्य का आचरण मन ,कर्म ,वचन ऐसा हो जो दूसरे को सुख पहुंचाए। उसकी पीड़ा को किसी बिध कम करे। सेवा सुश्रुषा ही अर्चना है पूजा है: ईश्वर : सर्वभूतानां हृदेश्यरजुन तिष्ठति। जो सभी प्राणियों के हृदय प्रदेश में निवास करता है। सृष्टि के कण कण में उसका वास है परिव्याप्त है वही ईश्वर पूरी कायनात में जड़ में चेतन में। इसीलिए प्राणिमात्र की सेवा ईश सेवा ही है। सेवा के प्रति हमारा नज़रिया (दृष्टि कौण )क्या हो कैसा हो यह महत्वपूर्ण है : तनमनधन सब कुछ अर्पण हो अन्य की सेवा में। दातव्यमिति यद्दानं दी