दैनिक जागरण (२२ सितंबर २०२० अंक )का दूसरा सम्पादकीय "समझने लगे किसान "उतना ही सार्थक संदेशपरक है जितना पहला सम्पादकीय "संसदीय अराजकता ".हम दूसरे सम्पादकीय की बात तक ही खुद को सीमित रखेंगे। बड़ा सुखद अनुभव है भिवानी जिले की तहसील कस्बा लोहारू में ट्रेक्टरों पर आरूढ़ किसानों का कृषि संबंधी तीन विधेयकों के समर्थन में उतरना। ज़ाहिर है किसान जागरूक है धंधेबाज़ हुड्डाओं -चौटालाओं की करामात के प्रति एक अदद मूढ़मति शहज़ादा कांग्रेस के अनर्गल प्रलाप के प्रति। प्रबुद्ध किसान जानता है और मानता है :आज उसके दोनों हाथों में लड्डू हैं। वह समझ गया है -अब वह अपने फसल उत्पाद देश भर में कहीं भी बेचने के लिए स्वतन्त्र है। स्थानीय मंडियों में अपना अनाज लाये या पड़ौसी जिले ,राज्य की मंडियों में ले जाए। एक उत्पादक संघ के तहत अपना माल (कृषि जिंस ) बेचे या किसी व्यवसाई से अनुबंध के तहत। अनुबंध खेती के तमाम प्रावधान (किसान हितों का संरक्षण करने वाले हैं )यह भी उसने जान लिया है।ई -रजिस्ट्री इसका खुलासा करती है। किसान को अधिक धन देकर कोई भी खिलाड़ी व्यावसायिक धंधेबाज़ किसान को बंधुआ नहीं बना सकेग