यादों का झरोखा :समधि साहब श्री ईश्वर दास जी सैनी
समान बुद्धि मेधा वाले समकालीनों को समधि कहा जाता है। लेकिन सुप्रीय परमादरणीय ईश्वर सिंह जी उर्फ़ ताऊ जी को उनकी पीठ पीछे मैं अमित के ताऊ जी के रूप में ही सम्बोधित करता रहा। जब मिले और जितनी भी बार मिले एक आत्मीय भाव दोनोँ के बीच कब बड़ा हो गया पता ही नहीं चला और वह बिना बताये चले भी गए गो-लोक वृन्दावन। कोरोना का क्रूर हाथ न उम्र देख रहा है न सेहत। जीने का हरफनमौला अंदाज़। यहां सब धान सत्ताईस सेर बिक रहा है।बला का एनर्जी लेवल था उनका काम करने की आगे बढ़ने की कूवत बीच पर्यटन को भी वह बनाये रहे तीर्थाटन के अलावा मौजमस्ती के लिए केंटन अमरीका ,कनाडा सिंगापुर आप पहुंचे तो बिजनिस के सिलसिले में चीन भी आप पहुंचे। और हाँ अमित की ताई जी हमारी वरिश्ठतम समधिन और वह कभी अलग अलग दिखलाई नहीं दिए ऐसा एका अन्-अन्य प्रेम भाव दोनों के बीच देखा -कूल कूल जो अन्यतर नसीब होना मुमकिन नहीं है।
ईश्वर-सिंह जी का 'होना ' उनकी उपस्तिथि ,हाज़िरी उनकी, हर मौके पर आश्वस्त करती थी कहती हुई -मैं हूँ ना ,तुम मस्त रहो। आँखों में उनके नेहा भी रहता था आदेश भी ,चेहरे पर ताज़गी। आप गुलदस्ते के दीगर पुष्पों की तरह तीन अदद बेटे बहुओं को बालक टोली को बांधे रहे आगे बढ़ने का मौक़ा मुहैया करवाते रहे। ऐसा अपनावा और परस्पर बॉन्डिंग आजकल मिलना एक विरल घटना ही कहा जाएगा।आप सही अर्थों में एक वटवृक्ष थे वृहत्तर सैनी कुनबे के।
एक निमंत्रण आपकी आँखों में शब्दों से ज्यादा उछाले मारता रहता था -आना गुंजन अमित के संग आना सुभष नगर हमारे घर फैक्ट्री पर ।
मेरी उनसे आखिरी मुलाक़ात जनवरी २०२१ के मध्य में हुई थी यूं लगता है अभी कल ही की बात है वह एकदम से चुस्त दुरुस्त अपने चिरपरिचित अंदाज़ में मिले मुझे अपने पास ही बिठाये रखा। मौक़ा वह गमी का था लेकिन यहां भी उनका सत्कार भाव उनसे आगे था -अरुण को कहा दो दोने हलवे के लाओ।
बात करने के लिए उन्हें ज्यादा शब्दों की जरूरत नहीं पड़ती थी। ही वास ए मेन ऑफ़ फ्यू वर्ड्स। आँखें ही सब कुछ कह देती थीं -कैसे हो ,सब ठीक ठाक !खुश रहो !आज वह सशरीर हमारे बीच नहीं हैं चुपचाप दीवार पर जा बैठे हैं फोटो बन के अभी भी लगता है कह रहे हैं -मैं हूँ ना ..कैसे हो सब ठीक है।
उनकी दिव्यता को मेरे प्रणाम मैं प्रार्थना करता हूँ चिरंजीव बेटे अरुण जी अब इस गुरुतर भार को संभाले ,उसी भाव और शक्ति से ,जैसे वह ताऊ जी - एनर्जी के स्टोर हाउस थे पावर पैक थे वैसे ही बने रहे बेटे अरुण जी भी बांधे रहे एक डोर से गुलदस्ते के पुष्पों को। खुशबुएँ बरकरार रहें।यही मेरी पुष्पांजलि प्रेमान्जलि है भाई साहब के प्रति।
हरे कृष्ण !
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