यादों के झरोखे से वक्त बे -वक्त याद चली आती है बचपन की। सुख्खन मामा के तबले पर कहरवा ताल की गमक की। यही वो मीठे इंसान थे जिन्होंने नन्नी सी जान को वीरू जान को मन्त्र मुग्ध किया तबले की थाप से बांसुरी की तान से -
कोरोना के इस दौर में जब सब ओर मायूसी एकरसता नीरसता नीरवता का डेरा है यादों के झरोखे से वक्त बे -वक्त याद चली आती है बचपन की। सुख्खन मामा के तबले पर कहरवा ताल की गमक की। यही वो मीठे इंसान थे जिन्होंने नन्नी सी जान को वीरू जान को मन्त्र मुग्ध किया तबले की थाप से बांसुरी की तान से -
चंदा मामा दूर के पुए पकाए बूर के ....
छुप गया कोई रे ,दूर से पुकार के ...
उसी लड़ी में यादों की चला आया यह गीत जो बे -तरह आपने मुझसे गवाया था उस दौर में जब शब्दों का अर्थ बोध हमारे पास नहीं था सम्मोहन था उस दौर के संगीत का और साज़िदों के जादू का। आप भी गवाह बनिए यादों की इस दास्ताँ का
तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं -मुकेश -लता मंगेशकर
फिल्म :आस का पंछी (१९६१ )
गीतकार :हसरत जयपुरी
संगीत :शंकर जयकिशन
स्थाई :
मुकेश :तुम रूठी रहो ,मैं मानता रहूं ,
के इन अदाओं पे और प्यार आता है।
लता :थोड़े शिकवे भी हों ,कुछ शिकायत भी हों ,
तो मज़ा जीने का और भी आता है।
अंतरा -१
मुकेश :हाय दिल को चुराकर ले गया ,
मुंह छिपा लेना हमसे वो आपका।
देखना वो बिगड़ कर फिर हमें ,
और दांतों में उँगली का दाबना,
ओ मुझे तेरी कसम ये ही समा मार गया ,
इसी जलवे पे तेरे दोनों जहां हार गया।
तुम रूठी रहो .......
लता :ये न समझो तुमसे दूर हूँ ,
तेरे जीवन की प्यार भरी आस हूँ।
चाँद के संग जैसे है चांदनी ,
ऐसे मैं भी तेरे दिल के पास हूँ।
हाय वो दिल नहीं जो धड़कना जाने ,
और दिलदार नहीं जो ना तड़पना जाने ,
थोड़े शिकवे भी हो ,कुछ शिकायत भी हो .....
अंतरा -२
चाहे कोई डगर हो प्यार की ,
खत्म होगी न तेरी मेरी दास्ताँ।
दिल जलेगा तो होगी रौशनी ,
तेरे दिल में बनाया मैंने आशियाँ।
ओ सर्द पूनम की रंग भरी चाँदनी ,
मेरी सब कुछ मेरी तकदीर मेरी ज़िंदगी।
तुम रूठी रहो ......
https://www.youtube.com/watch?v=Xbnj55AUtXE
Tum Roothi Raho Main Manata Rahun | Mukesh,Lata Mangeshkar|Aas Ka Panchhi 1961 Songs| Rajendra Kumar
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