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पारुल खक्कड़ की ये कविता ग्रेटा थूं बर्ग की तरह पेड ट्वीट से ज्यादा और कुछ भी नहीं है। इसे कहते हैं मेधा का अपमान ,कलम की ताकत से विध्वंश की रचना ,एक स्वास्थ्य विपदा की गलत व्याख्या

Gujarati poet #Parulkhakkar's poem #ShabvahiniGanga has gone viral she was trolled on #Facebook .#economist article #VanishingAct also refers to it towards the end .This's what happens when you hog the limelight in good times to take credit but disappear in times of despair . Shiv Kant @shivkant  This Tool Kit owl poem is an insult to the art of writing ,abusing once own talent and falling prey to propaganda against the Modi establishments .An insult to our eternal values passing from one to another generation ,concerning rituals performed along the ganges.The poem is opportunistic in character and peeps through undergarments . पारुल खक्कड़ की ये कविता ग्रेटा थूं बर्ग की तरह पेड ट्वीट से ज्यादा और कुछ भी नहीं है। इसे कहते हैं मेधा का अपमान ,कलम की ताकत से विध्वंश की रचना ,एक स्वास्थ्य विपदा की गलत व्याख्या। जबकि गंगा किनारे शव को भू -समाधि देने की एक परम्परा कई जगह आज भी विद्यमान है। बाढ़ के साथ ये शव बह जाते रहें हैं। गये साल जहां जहां बरसात नहीं गिरी ये शव उतर  आये गंगा के वक्ष

यादों के झरोखे से वक्त बे -वक्त याद चली आती है बचपन की। सुख्खन मामा के तबले पर कहरवा ताल की गमक की। यही वो मीठे इंसान थे जिन्होंने नन्नी सी जान को वीरू जान को मन्त्र मुग्ध किया तबले की थाप से बांसुरी की तान से -

कोरोना के इस दौर में जब सब ओर मायूसी एकरसता नीरसता नीरवता का डेरा है यादों के झरोखे से  वक्त बे -वक्त याद चली आती है बचपन की। सुख्खन मामा के तबले पर कहरवा ताल की गमक की। यही वो मीठे इंसान थे जिन्होंने नन्नी सी जान को वीरू जान को मन्त्र मुग्ध किया तबले की थाप से बांसुरी की  तान से - चंदा मामा दूर के पुए पकाए बूर के .... छुप गया कोई रे ,दूर से पुकार के ... उसी लड़ी में यादों की चला आया यह गीत जो बे -तरह आपने मुझसे गवाया था उस दौर में जब शब्दों का अर्थ बोध हमारे पास नहीं था सम्मोहन था उस दौर के संगीत का और साज़िदों के जादू का। आप भी गवाह बनिए यादों की इस दास्ताँ का     तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं -मुकेश -लता मंगेशकर  फिल्म :आस का पंछी (१९६१ ) गीतकार :हसरत जयपुरी  संगीत :शंकर जयकिशन  स्थाई : मुकेश :तुम रूठी रहो ,मैं मानता रहूं , के इन अदाओं पे और प्यार आता है।  लता :थोड़े शिकवे भी हों ,कुछ शिकायत भी हों , तो मज़ा जीने का और भी आता है।  अंतरा -१  मुकेश :हाय दिल को चुराकर ले गया , मुंह छिपा लेना हमसे वो आपका।  देखना वो बिगड़ कर फिर हमें , और दांतों में  उँगली  का दाबना, ओ मुझे तेरी कसम ये ही समा

नील सोनी और अलका आर्य नदी के दो छोर हैं। नील एक रंगकर्मी है और अलका आर्य आरक्षित कोटे से ऊँचे औंधे वाली अफ़सरानी है। नदी के दो छोर हैं दोनों लहरें जिन्हें जोड़ती ज़रूर हैं एक नहीं कर पातीं।

नील सोनी और अलका आर्य नदी के दो छोर हैं। नील एक रंगकर्मी है और अलका आर्य आरक्षित कोटे से ऊँचे औंधे वाली अफ़सरानी है। नदी के दो छोर हैं दोनों लहरें जिन्हें जोड़ती ज़रूर हैं एक नहीं कर पातीं।   ज्वार -भाटा से रागात्मक संबंध कब एक सुनामी में बदल जाएं ,'ताऊ  -ते' या 'कैटरीना' हो जाएं इसका कोई निश्चय नहीं। नील परम्परा-बद्ध लेखन की तरह हैं तो अलका छंद मुक्त कविता से लेकर नै कविता,हाइकु से लेकर क्षणिका तक एक साथ सब कुछ है। कब बैलाड , आलाऊदल की तरह वीर-गाथा बन जाए हल्दी घाटी हो जाए इसकी भी  कोई प्रागुक्ति नहीं कर सकता।   उपन्यास के अंदर एक अंडरकरेंट है अंतर् धारा है सतह के बहुत नीचे जहां एक साथ थियेटर की प्रतिबद्धता और अनुशासन  है ,साधन और साध्य का ऐक्य भी है तो अफसरी की बदमिज़ाजी और अहंकार भी है। और इसके के नीचे दबी कुचली एकल नारी की व्यथाकथा है निस्संगता और बेबसी है। अलका के यहां स्थायित्व नहीं है। शी इज़ इमोशनालि अनस्टेबिल। एक तुनकमिज़ाज़ी का मूर्त रूप है अलका आर्य जो सामूहिक रूप से धू... आँ पैदा करती है और उस धुंध के आड़ में अपनी पसंद ढूंढ लेती है। आउट आफ दी वे जाकर नील की  मदद करत

यादों का झरोखा :समधि साहब श्री ईश्वर दासजी सैनी

यादों का झरोखा :समधि साहब श्री ईश्वर दास  जी सैनी  समान बुद्धि मेधा वाले समकालीनों को समधि कहा जाता है। लेकिन सुप्रीय परमादरणीय ईश्वर सिंह जी उर्फ़ ताऊ जी को उनकी पीठ पीछे मैं अमित के ताऊ जी के रूप में ही सम्बोधित करता रहा। जब मिले और जितनी भी बार मिले एक आत्मीय भाव दोनोँ  के बीच कब बड़ा हो गया पता ही नहीं चला और वह बिना बताये चले भी गए गो-लोक वृन्दावन। कोरोना का क्रूर हाथ न उम्र देख रहा है न सेहत।  जीने का हरफनमौला अंदाज़। यहां सब धान सत्ताईस सेर बिक रहा है।बला का एनर्जी लेवल था उनका काम करने की आगे बढ़ने की कूवत  बीच पर्यटन को भी वह बनाये रहे तीर्थाटन के अलावा मौजमस्ती के लिए केंटन अमरीका ,कनाडा सिंगापुर आप पहुंचे तो बिजनिस के सिलसिले में चीन भी आप पहुंचे। और हाँ अमित की ताई जी हमारी वरिश्ठतम समधिन और वह कभी अलग अलग दिखलाई  नहीं दिए ऐसा एका अन्-अन्य प्रेम भाव दोनों के बीच देखा -कूल कूल जो अन्यतर नसीब होना मुमकिन नहीं है।       ईश्वर-सिंह जी का 'होना ' उनकी उपस्तिथि ,हाज़िरी उनकी, हर मौके पर आश्वस्त करती थी कहती हुई -मैं हूँ ना ,तुम मस्त रहो। आँखों में उनके नेहा भी रहता  था आदेश भी

राहुल भैया ,गाल बजैया , बंद करो अब ता ता थइयाँ।

राहुल भैया ,गाल बजैया , बंद करो अब ता ता थइयाँ।  बंद करो ये चिठ्ठी चिठ्ठा , काबू में रखों खड़गैया , घर में देखो अपनी मैया।  देश घिरा संकट में  भारी , अब तो छोड़ो ये नंगैया।  दुखद है संकट की इस असाधारण घड़ी में जबकि तमाम देश भारत की मदद को आगे आ रहे हैं कुछ लोग और उनकी मैया ,बहनैया इसी सोच के दीगर लोग पानी पी पीकर इंतजामिया को कोस रहे हैं। राष्ट्रपति और  प्रधान मंत्री को नित्य चिठ्ठी लिख रहें हैं। बिना टीका लगवाए कथित किसान नेताओं की तरह बे -लगाम घूम रहे हैं। शरम सारी बेच खाई अब नंगई पे उतर  आये हैं।  भारत ने था वक्त पर दिया सभी का साथ , बढ़ा रहें हैं इसलिए सभी मदद का हाथ।  सभी मदद का हाथ यही तो मानवता है , संकट के पल दौड़ पड़ो पाए बिन न्योता।  देखि सभी के कष्ट रहे ,यदि आप नदारद , तो कैसे उम्मीद करो औरों से भारत।                      ---------कविवर ॐ प्रकाश तिवारी।    

इतनी मीठी स्वरलहरी कभी कभार ही अब मन को मोहित करती है। जब करती है तो करती ही चली जाती है। बरसों बाद संगीत की यह माधुरी सुनी जो किसी भाषिक अलंकरण की मोहताज़ नहीं दिखती।सीधी सपाट पंजाबी बोली यही तो लोक का जादू है ,वही जो सर चढ़के बोलता रहा है। गदगद हुआ मन आह्लादित है इस मधुर लय - तान और उतने ही सुंदर फिल्मांकन पर। आप भी आनंद लीजिये :

तू यूं ना जुदाइयोँ की बातें किया कर , हम छोटे दिल वाले हैं डर -जायेंगें।  हम तुझमें इतना डूब  गए जैसे मछली पानी में , अरे! बाहर अगर निकले तो मर जाएंगे।  निभाईं रस्मा वे ,ओ तनु कस्मा वे , तू मैनु  छोड़ियो ना , ओ मेरे खसमा वे , हम खाली खाली खाली ,इस खाली दुनिया में , तू हाथ ज़रा लगाना ,रे भर जाएंगे।  हम तुझमें इतना डूब  गए जैसे मछली पानी में , अरे बाहर अगर निकले तो मर जाएंगे।  अरे बाहर अगर निकले तो मर जाएंगे।  तुम्हें  कभी जो मुझको छोड़ कर  ,फिर वापस आना होगा , मेरे घर का पता मेरे शहर का पागल खाना होगा।  ओ तेरे बिन ये दुनिया वाले ,दुनिया वाले ओ जानी , हाय ! पूछ पूछ तेरा हाल ,पागल कर जाएंगे। हम तुझमें इतना डूब  गए जैसे मछली पानी में , अरे बाहर अगर निकले तो मर जाएंगे।  अरे बाहर अगर निकले तो मर जाएंगे।  ये बस बातें कर सकते हैं ,और कुछ भी कर नहीं सकते , ये तेरे दीवाने नकली से ,तेरे वास्ते मर नहीं सकते।  एक हम हैं तेरी खातिर ,बस तेरे कहने पे , हाय ! बिना किसी सवाल ,सूली चढ़ जाएंगे।  हम तुझमें इतना डूब  गए जैसे मछली पानी में , अरे बाहर अगर निकले तो मर जाएंगे।  अरे बाहर अगर निकले तो मर जाएंगे।  प्र