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महाठगबंधन का बिकाऊ माल

महाठगबंधन का बिकाऊ माल  दो फिसड्डी छात्र थे परीक्षा में नकल करते पकड़े गए। बरसों ये विश्वविद्यालय में डेरा डाले रहे। आखिर इम्तिहान में धर लिए गए। रस्टीकेट कर दिए गए। दोनों ने मिलकर एक स्कूल खोला और उसके प्राचार्य और उपप्राचार्य बन गए। 'कर -नाटक 'में यही हुआ है। 'नाटक' अभी ज़ारी है। इन पंद्रह दिनों में कुछ भी हो सकता है। 'विषकन्या कांग्रेस' और ' जनता द बल बडगौड़ा' दोनों तरफ के विधायकों  में गहरी चिंता व्याप्त है। हालांकि अमित शाह शांत हैं भारतीय जनता पार्टी सुकून में है। लेकिन विधयाकों का रेवड़ बे -चैन है कहीं फिर हमें नज़रबंद न कर दिया जाए।४८ घंटे बड़ी बे -चैनी में बीते थे।  कुछ राजनीति के धंधेबाज़ों की मांग है हमें एक बार फिर 'सुप्रीम -कोर्ट' को आधी रात गए खुलवाना चाहिए। पहले से ही बे -चैन 'अपेक्स -कोर्ट' राजी हो जाएगा और महाठगबंधन को  बहुमत सिद्ध करने के लिए दिए गए समय को अपनी ही हालिया नज़ीर के मद्दे नज़र घटाकर पुन : ४८ घंटे कर देगा। भारतधर्मी समाज के राष्ट्रीय प्रवक्ता और विचारक डॉ. वागीश मेहता नन्दलाल ने हमसे एक गैर -औपचारिक बातचीत में उक्

खड़खड़ करता दुःशासन है , बेबस द्रुपद -सुता संसद है ,

आज संसद को जिस तरह ठप्प किया जा रहा है उससे सारा देश विक्षुब्ध है। भारत धर्मी समाज का मन उद्वेलित है। केवल चंद जेहादी तत्व खुश हैं। कौन करवा रहा है संसद ठप्प पूरा देश जानता है। व्यथित मन की संवेदना फूटी है कविता बनकर डॉ वागीश मेहता ,प्रमुख ,भारत धर्मी समाज के मुखारविंद से : चार उचक्के चालीस चोर          (१) संसद ठप्प करने का काम , कैसा आसन कौन प्रधान , चार उचक्के चालीस चोर , ढप ढप करते फटे हैं ढोल , किसी और की बात न सुनते , शोर - शोर बस केवल शोर .             (२) खड़खड़ करता दुःशासन है , बेबस द्रुपद -सुता संसद है , एक इंच भी नहीं हटूंगा , दुर्योधन का अड़ियलपन है , गांधारी मुस्काती मन -मन , धृतराष्ट्र भी खूब मगन है।          (३) शोर शराबे  की मस्ती है , तर्क नियम की क्या हस्ती है , पंद्रह मिनिट मैं बोल पड़ा तो , संसद की तो क्या गिनती है , मन मारे अब विदुर मौन हैं , मौन पितामह द्रोण मौन हैं , शकुनि ने फेंके हैं पासे , सबकी अटक गईं हैं साँसें।          (४ ) न्यायपीठ पर चोट करन्ते  , लोकलाज और शील के हंते , राष्ट्र समूचा स्तब्ध -मना है ,