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साहित्य और टेक्नोलॉजी -डॉ.चंद्र त्रिखा

साहित्य और टेक्नोलॉजी -डॉ.चंद्र त्रिखा  आज हर  व्यक्ति कासिब है जो चिठ्ठाकारी ,ट्वीट ,के अलावा अपनी फेसबुक वाल मुख़-चिट्ठे पर हिंदी में लिख रहा है। खतोकिताबत पत्रव्यवहार हिंदी में कर रहा है सन्देश शार्ट मेसेज हिंदी में लिख रहा है सम्पादन का भी झंझट नहीं है रोमन से हिंदी अंतरण करते वक्त एक शब्द के सभी संभावित शुध्द एवं दीगर रूप सामने आ जाते हैं। अलबत्ता आपको हिंदी की वर्तनी आनी  चाहिए।   बेशक अपडेट रहना पड़ेगा वरना साहित्य में भी डस्ट बिनें ,कचरा टोकरियाँ हैं,स्पेम बॉक्स हैं।   किस तरह जमा कीजिये अपने आप को , कागज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के।  किताब कोई भी हो सकती है -मियाज़ ,क़ुरआन -ए -पाक नीज़ तौरेत ,इंजील या ज़बूर ,धमपद  वगैरहा।एक किताब (क़तैब )को मानने वाले कतैबियों के लिए विरासत को सहेज के रखना लाज़मी हो गया है।  मान्यवर त्रिखा जी उर्दू के बेहतरीन अलफ़ाज़ काम में ले रहे हैं बेहतर हो वह इन अल्फ़ाज़ों के आम औ ख़ास के लिए मायने भी बतलायें। किताबत का अर्थ बतलायें कासिब तो आपने बतला दिया।कुछ नए शब्दों का भी ज़िक्र छिड़े  तो बात बने -साइबोर्ग ऐसी  ही अभिनव सौगात है प्रौद्योगिकी की (साइबरनेटिक्स और ऑर्

कहाँ गईं धर्मयुग एवं अन्य पत्रिकाएं -डॉ.चंद्र त्रिखा (हरियाणा साहित्य अकादमी )

कहाँ गईं धर्मयुग एवं अन्य पत्रिकाएं -डॉ.चंद्र त्रिखा (हरियाणा साहित्य अकादमी ) दोस्तो! पुराना बहुत कुछ वैयक्तिक अतीत की तरह प्रिय होता है। भला हो मष्तिष्क का जहां सीखने के साथ भूलने की प्रक्रिया भी चलती है लेकिन वही चीज़ें विस्मृति में विलीन होती है जो अप्रिय होतीं हैं। १९७० के  दशक में पत्र -पत्रिकाएं बुक रेक में मुखरित होतीं थीं आवाज़ देती थीं सारिका की कहानियां ,कभी आंचलिक कथा साहित्य तो कभी विश्वसाहित्य विशेषांक। धर्मयुग ,साप्ताहिक हिन्दुस्तान ,दिनमान ,हंस ,कादम्बिनी आदिक सप्ताही एवं मासिक पत्रिकाएं आपका मान सम्मान बढ़ातीं थीं।इनका संग साथ घर -दफ्तर कालिज  में हमारा निकटतम राजदान बना रहता था।  वैयक्तिक भावजगत, रागात्मकता का श्रीवर्धन करती थीं ये पत्र-पत्रिकाएं। डॉ.चंद्र त्रिखा ने गुज़िस्तान दिनों की ही नहीं हमारे अतीत की ही याद ताज़ा कर दीं अपनी भावप्रवण शैली में ।  परिवर्तन की रफ़्तार में बने रहना भी एक कला है। परिवर्तन की वेगवती धारा आज सब कुछ को बहाये लिए जाए है। प्रौद्योगिकी से लेकर साहित्य ,साहित्येतर कलाओं ,ललित एवं प्रदर्शनात्मक कलाओं का तेवर रंग -रूप ,चंद शब्दों  में सिमटने समाने