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हमारे पुराणों में अक्सर कहानियों किस्सों ,कथाओं के माध्यम से आम औ ख़ास को सन्देश दिया गया है। राजा रंति देव की कथा आती है

हिंदुत्व में सेवा भाव की अवधारणा  "सर्वे भवन्तु सुखिन : सर्वे भवन्तु निरामया : सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत। " अर्थात सब सुखी हो ,सब आरोग्यवान हों ,सब सुख को पहचान सकें ,कोई भी प्राणि किसी बिध दुखी न हो।  May all be happy ;May all be without disease ; May all see auspicious things ; May none have misery of any sort. सनातन  धर्म (हिंदुत्व ) सेवा को सबसे बड़ा धर्म मानता है।  परहित सरिस धर्म नहीं भाई।  परपीड़ा सम नहीं, अधमाई।।  सेवा यहां एक सर्व -मान्य सिद्धांत  है।मनुष्य का आचरण मन ,कर्म  ,वचन ऐसा हो जो दूसरे को सुख पहुंचाए। उसकी पीड़ा को किसी बिध कम करे। सेवा सुश्रुषा ही अर्चना है पूजा है: ईश्वर : सर्वभूतानां  हृदेश्यरजुन तिष्ठति।   जो सभी प्राणियों के हृदय प्रदेश में निवास करता है। सृष्टि के कण कण में उसका वास है परिव्याप्त है वही ईश्वर पूरी कायनात में जड़ में चेतन में। इसीलिए प्राणिमात्र की सेवा ईश सेवा ही है।  सेवा के प्रति हमारा नज़रिया (दृष्टि कौण )क्या हो कैसा हो यह महत्वपूर्ण है : तनमनधन सब कुछ अर्पण हो अन्य की सेवा में।  दातव्यमिति यद्दानं दी

हिंदुत्व में परमात्मा की शक्ति का प्राकट्य अनेकरूपा नारी है। दिव्य माँ के रूप में हिंदुत्व में ही नारी आराध्य देवीरूप में है

हिंदुत्व में परमात्मा की शक्ति का प्राकट्य अनेकरूपा नारी है। दिव्य माँ के रूप में हिंदुत्व में ही नारी आराध्य देवीरूप में  है  विद्या ,ज्ञान-विज्ञान , ललित एवं संगीत अभिनय आदि कलाओं की देवी यहां सरस्वती हैं। सांगीतिक प्रस्तुतियों के पहले दीप प्रज्जवलित किया जाता है माँ सरस्वती का आवाहन करने के लिए।  लक्ष्मी तमाम वैभव और सम्पदा ,धन की दात्री है। आराध्या है सनातन धर्मी भारतधर्मी समाज की। दुर्गा और काली दुष्ट संहारक हैं।  अथर्व वेद की ऋचाओं का आरम्भ देवी उपासना से होता है : यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता (मनुस्मृति ) अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है देवगण विराजते हैं वहां।  तैत्तिरीय उपनिषद में आया है : मातृदेवो भव  Let your mother be God to you  माँ हमारे लिए परमात्मा की तरह  आराध्या है  मनुस्मृति का उद्घोष है : A family whose women live in sorrow perishes .The family whose women are happy always prospers .A household whose unhappy women members curse perishes completely -Manusmriti  यहां गांधारी कृष्ण को भी शाप दे सकती है।  किसी राष

अल्लाह का भी अर्थ यही है जो सबसे पहले था अव्वल था। हराम को हलाला कहने वाले लोग राम के बारे में टिपण्णी न करे ये अशोभन है किसी मज़हब तक सीमित नहीं हैं राम संस्कृति के सूत्र की लड़ियाँ हैं राम ,ईश्वर अल्लाह ...

तीन तलाक की आड़ में मुस्लिम मौतरमाओं का शोषण करने वाले जब यह कहते हैं के राम ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर दिया था तब ये लोग ये बिलकुल नहीं जानते के राम कौन हैं।  न ये दशरथ पुत्र को जानते न राम को। मुनि वशिष्ठ जी ने दशरथ के बड़े पुत्र का नाम राम सुझाया था जो इस बात का प्रमाण है के राम ,दसरथ पुत्र राजा राम से पूर्व  थे।  राम का अर्थ है रमैया जो रमा हुआ है ओतप्रोत है इस सृष्टि में पूरी कायनात में करता पुरुख की तरह जो बैठा हुआ है कायनात के ज़र्रे ज़र्रे में हमारे हृदयगह्वर में।  राम ,अल्लाह ,वाह गुरु मज़हब विशेष से ताल्लुक रखने वाले नाम भर नहीं हैं ये भारत की सर्वसमावेशी संस्कृति सूत्रों की मनोरम माला के यकसां मनके हैं।  शिव ने सती  का परित्याग एक और धरातल पर किया था। सती ने सीता का रूप भरके शिव शंकर भोले के गुरु राम की परीक्षा ली थी। बस शिव ने कहा ये तो मेरी माता का रूप भर चुकीं हैं अब मेरे लिए पत्नी रूप में स्वीकार्य कैसे हो।  ये मेरे गुरु का अपमान और अवमानना होगी।  राजा राम प्रजातंत्र के शिखर को छूते  हैं  उनके गुप्तचरों ने उन्हें बतलाया था सीता के बारे में एक धोबी अपनी पत्नी को प

हिंदुत्व में ईश्वर सम्बन्धी अवधारणा :एकं सत् विप्रा : बहुधा वदन्ति (There is one ultimate reality (God ),known by many names -Rig Veda

हिंदुत्व में ईश्वर सम्बन्धी अवधारणा :एकं सत् विप्रा : बहुधा वदन्ति (There is one ultimate reality (God ),known by many names -Rig Veda  बतलाते हुए आगे बढ़ें -हिंदुत्व एक जीवन शैली का नाम है। सनातन धर्मी भारत धर्मी समाज के तमाम लोग हिन्दू कहाते हैं।  ईश्वर की अवधारणा में यहां पूर्ण प्रजातंत्र है। त्रिदेव की अवधारणा के तहत एक ही परमात्मा तीन रूपों में अलग अलग कर्मों का नैमित्तिक कारण माना गया है यही है त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश की अवधारणा।   तैतीस कोटि (कोटि यानी प्रकार )देव हैं यहां। कुलजमा जोड़ ३३। देव का अर्थ गॉड नहीं है। यह अनुवाद की सीमा है। देव का पर्याय परमात्मा नहीं है देव ही है। जैसे  रिलिजन का रिलिजन ,धर्म का धर्म ही  पर्याय है। कोटि का गलत अर्थ करोड़ कर दिया गया है। संस्कृत भाषा का मूल शब्द है कोटि जिसके एकाधिक अर्थ हैं। तैतीस कोटि देवता यहीं से चलन में आया है तैतीस तरह को तैतीस करोड़ कर दिया गया एक अनुवाद के तहत।   One God fulfilling three different roles is often depicted as three in one . One Supreme Reality :Ishwara ,Bhagwan ,Sat-Chit-Anand (absolute existence ,absolut

What is Creation (जगत ,सृष्टि ,ब्रह्माण्ड ,कायनात )?

What is Creation (जगत ,सृष्टि ,ब्रह्माण्ड ,कायनात )? Creation ,Jagat is infinite .Hindus (सनातन धर्मी ,भारत धर्मी समाज )believe that this universe we live in has always existed and will always continue to  exist . Unlike God ,who is subject to modification ,Nature (प्रकृति )is in a state of eternal and constant change .God is the cause for the existence of Prakriti (प्रकृति )just as He is the source of Atma's existence .Due to power of God alone ,Prakriti is undergoing a never -ending cycle of creation ,sustenance and dissolution .Creation ,when properly understood ,should be thought of as a projection of God Himself and not just his creation . आदि गुरु शंकराचार्य ने कहा -ब्रह्म ही सत्य है जगत(प्रकृति ) मिथ्या है। यह जगत का मिथ्या होना साधारण अर्थों में नहीं है। जगत है दिखलाई  देता है हमारा उसके साथ लेन  देन है ट्रांजेक्शन है। वह व्यावहारिक सत्य है भले परम सत्य न सही क्योंकि निरंतर परिवर्तन शील है अस्थाई है। लेकिन वह है तो ,उसकी सत्ता से इंकार नहीं किया जा सकता।जो निरंतर बदले वह