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ज्यों संसार विषय सुख होता क्यों तीर्थंकर त्यागे

https://nikkyjain.github.io/jainDataBase/poojas/06_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0/25_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE--%E0%A4%AA%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%A4-%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8/html/index.html भाषाकार : कविश्री भूधरदास (दोहा) बीज राख फल भोगवे, ज्यों किसान जग-माँहिं | त्यों चक्री-नृप सुख करे, धर्म विसारे नाहिं ||१|| अर्थात चक्रवर्ती राजा जो राजाओं का भी राजा होता है राजपाट के सुख तो भोगे लेकिन धर्मपूर्वक आचरण करते हुए ही।  (जोगीरासा व नरेन्द्र छन्द) इहविधि राज करे नरनायक, भोगे पुण्य-विशालो | सुख-सागर में रमत निरंतर, जात न जान्यो कालो || सुख का उपभोग करते वक्त खासकर अच्छे  दिनों में समय के बीतने का भान ही नहीं  होता ऐसे ही सुख के सागर में नरपति डूबे लेकिन आचरण की शुचिता बनाये रहे। वैराग्यपूर्वक इसका उपभोग करे। (जात  न जान्यो कालो का अर्थ -यहां समय के व्यतीत होने का  भान न होने से है  ) एक दिवस शुभ कर्म-संजोगे, क्षेमंकर मुनि वंदे | देखि श्रीगुरु के पदपंकज,

यहां मेरा एक आशियाना था

यहां मेरा एक आशियाना था जब भी मन वर्तमान की विसंगतियों से थक जाता था ,यहां भाग आता था बेंगलुरु। इस बार भी यही हुआ था मुंबई सेंट्रल से उद्यान एक्सप्रेस पकड़ी थी और येलाहंका स्टेशन पर उतर गया था ,हाथ में आपके वाल्किंग स्टिक हो तो मददगार मिल ही जाते हैं ।मेरा ट्रेवेलाइट एक फौजी ने पकड़ा दिया था। आँखें शेखर भाई को ढूंढ रही थीं हालांकि उस छोटे से स्टेशन पर उतरने वाले इक्का दुक्का ही होते हैं। गाड़ी रुकी तो वह सामने थे मैंने देखा एक लम्बी वेणी रख ली है शेखर जैमिनी ने (शेखर जी )ने वजन भी खासा बढ़ा हुआ दिखा था। कब उन्होंने छोटी सी ट्रॉली कर ली पता ही नहीं चला। नज़रे उस छोटी सी गाड़ी को ढूंढ रही थीं जिसमें मंजुनाथ नगर की विजिट्स में मैं कई मर्तबा बैठ चुका था। उसके स्थान पर अब डीज़ल चालित चमचमाती एसयूवी थी धवल हिमालय सी। बाल अभी भी सब शेखर भाई के काले ही थे। बातों में पता चला तीन साल पहले किस्तों पर ली गई थी बस अब दो तीन किस्तें बकाया हैं। विद्यारयण्य पुरा में चले आये थे अब शेखर। आखिरी मर्तबा २००७ -०८ यहां आया था चैन्नई मैसूर शताब्दी से मंजुनाथ नगर आवास पर तब ये संगीत की दीक्षा देते थे संगीतविद