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नवंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ज़हर की पुड़िया और भारतीय लोकतंत्र

ज़हर की पुड़िया और भारतीय लोकतंत्र सुना है  इन दिनों केंद्रीय सुल्तानों ने भारत की फ़िज़ा में ज़हर घोल दिया है। भारतीय लोकतंत्र विषाक्त हो गया है इस ज़हर को बे -असर करने के लिए एक मल्लिका ने शिवसेना से समझौता किया है। सुना यह भी गया है फडणवीस जी ने लोकतंत्र को बंधक बना लिया था। यह तो वही बात हो गई जिसे लोकतंत्र के इम्तिहान में सबसे ज्यादा नंबर मिले वह फस्ट नहीं आया है। इस परीक्षा में  हार जाने वाले तीन फिसड्डी मिलकर कह रहे हैं फ़स्ट हम आएं हैं क्योंकि हमारे कुल तीनों के मिलाकर नंबर ज्यादा हैं। इस मलिका को विशेष कुछ पता नहीं है अपने आपको 'आज़ाद  'कहने वाला एक 'गुलाम ' जो अपने को नबी भी बतलाता है जो कुछ लिखकर दे देता है यह वही बोल देती है। रही सही कसर एक 'पटेल' पूरी कर देते हैं जो अहमद भी हैं और पटेल भी। वह  सेकुलर ताकतों का गठ जोड़ कहा जाता है। जहां हारे हुए तीन जुआरी  सेकुलर हो जाते हैं शकुनी  की तरह पासे फेंक कर।  जीते हुए साम्प्रदायिक कहलाते हैं इनकी जुबां में। आज यह सवाल पहले से ज्यादा मौज़ू हो गया है : भारत में कौन कहाँ कब 'सेकुलर' हो जाए इसका कोई न

शख्सियत :दुष्यंत चौटाला

शख्सियत :दुष्यंत चौटाला चौधरी देवीलाल जी दो विशेष गुणों के लिए जाने जाते थे। एक लोकलाज और दूसरा उदारता। यह नहीं के आक्रोश में नहीं आते थे। आक्रोश को ज़ाहिर करते थे लेकिन जल्दी ही उसे भूल भी जाते थे। जिसे  आवेश में आकर थप्पड़ रसीद कर देते थे प्यार  भी उसे ही करते थे। अंदर बाहर दोनों तरफ से एक पारदर्शिता झांकती रिसती रहती थी उनकी शख्सियत से। सहज रूप में उनके खानदानी गुण आगे बढ़के मार्गदर्शन करने  की क्षमता दुष्यंत चौटाला में चली आई है।दुष्यंत अपनी सौम्यता और अदबियत  में आगे रहते हैं। एक सहज चुंबकीय आकर्षण इस युवा की ओर एक बेहद का खिंचाव  पैदा करता है। मुद्दा पर्यावरण का हो या राजनीति आपकी एक बेबाक राय है। राज्य की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए आप एक अखिल भारतीय दृष्टिकोण अपने विमर्श में प्रस्तुत करते हैं।आपका जन्म तीन अप्रैल उन्नीस सौ अठासी को हरयाणा के हिसार जिले के दरौली गाँव (तहसील आदमपुर )में हुआ। राजनीति में आपका आगाज़ जिस शानदार तरीके से हुआ है वह आपको नै बुलंदियों पर ले जाएगा। आप को सोलहवीं लोकसभा के सबसे युवा सांसद रहे हैं। तब आपकी उम्र  छब्बिस  बरस ही थी। आपकी आरम्भिक शिक्षा हिस

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मान्यवर एवं सुप्रिय मनोहर लाल जी खट्टर , जयश्रीकृष्णा !महज़ एक इत्तेफाक है आपकी जन्मतिथि पांच मई आरम्भिक कालिज की पढ़ाई नेकीराम शर्मा महाविद्यालय रोहतक में संपन्न हुई। आप एक कामगार  श्रमिक वर्ग से निकलकर  बारास्ता सांस्कृतिकक एवं समाज सेवी संगठन जो आज़ादी से पहले भी सारी तकलीफें उठाकर पृष्ठ्भूमि में रहते हुए भी लोगों को ऊर्जित करता रहा ,आपातकाल के दौरान भी  जिसने कभी शिवसेना की तरह इंदिराजी का समर्थन नहीं किया उस राष्ट्रीय स्वयं सेवक की अगुआई में राजनीति में   आगे आये हैं। मेरी जन्मतिथि पाँच मई  ,उन्नीस  सौ सैतालिस ,दादा जी रिटायर्ड हेडमास्टर एवं जगन फार्मेसी गुलावठी के संस्थापक जन्मदाता पंडित जगन्नाथप्रसाद मालिक होते हुए भीबसों में चढ़के दवाएं बेचते थे जिस दिन  उन्होंने शरीर छोड़ा  उस रोज़ भी चवन्नी कमाई। मैं ने श्री नेकीराम शर्मा महाविद्यालय में बतौर अस्थाई व्याख्याता ,भौतिकी के पद से बरस १९६८ से  आरम्भ करके बारास्ता चौधरी धीरपाल  सिंह स्नातोत्तर कालिज (बतौर प्राचार्य) पद से सेवा निवृत्ति संपन्न की। अपने अध्यापन के ३८ बरस मैं ने अध्यापन करते हुए भौतिक विज्ञानों के ( विज्ञान)लोकप्रि

अयोध्या फैसले पर वागीश मेहता ,राष्ट्रीय अध्यक्ष ,भारतधर्मी समाज

अयोध्या फैसले पर वागीश मेहता ,राष्ट्रीय अध्यक्ष ,भारतधर्मी समाज अयोध्या फैसले पर वागीश मेहता ,राष्ट्रीय अध्यक्ष ,भारतधर्मी समाज :बकौल आपके यह फैसला पक्ष विपक्ष का नहीं भारत की एक चिरकालिक समस्या का राष्ट्रीय समाधान प्रस्तुत करता है। इस विषय में माननीय असददुद्दीन ओवैसी अपनी खुद की राय रखते हुए कहते हैं ,सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम ज़रूर है ,इनसोलुबिल नहीं है। हम उनसे असहमत रहते हुए उनके   विमत का भी उतना ही आदर करते  हैं यही तो लोकतंत्र की ताकत है बस यदि यह उनकी निजी राय है तो अपने लिए 'हम 'सम्बोधन नहीं 'मैं 'मेरी ' राय में का इस्तेमाल करें।नाहक अपनी जुबां मुसलमानों के मुंह में फिट करने मुस्लमानाओं की ज़ुबाँ बतलाने की कोशिश न करें। इस्लाम का तो मतलब ही अमन है। कैसे तालिबान (इल्मी ,विद्यार्थी हैं ?)ज़नाब ओवेसी साहब ? कई लोग पूछ रहे हैं वे बे -शक मुस्लमान है, मुस्लिम हैं ,लेकिन सुप्रीम -मुस्लिम,सुपर मुसलमां  नहीं हैं। चाहे तो वह आइंदा आने वाले संभावित क्यूरेटिव पिटीशन की ज़िरह अपने हाथ में ले लें। यह टाइटिल सूट पर फैसला था ,जो खुदाई में मिले साक्ष्यों  के आधार पर दिया गया

"क़ानून बनाम लूट"के रखवाले

"क़ानून बनाम  लूट"के रखवाले हमारी सम्वेदनात्मक तरफदारी और तदानुभूति शहरी फौज (शहर की हिफाज़त करने वाली पुलिस )के साथ है। अलबत्ता वकीलों का हम सम्मान करते हैं लेकिन लूट में अगुवा उकीलों का नहीं जो सरे आम काले कोट की आड़ में ड्यूटी पर तैनात पुलिस अफसरान को इन दिनों पीटते देखे जा सकते हैं। ये वकीलनुमा -उकील 'वकील' नहीं हैं -उकील हैं। जो अभी मुज़रिम की ओर  दिखाई देते हैं और बोली बढ़ने पर थोड़ी देर बाद ही पीड़ित की ओर । शहर का रक्षक ऐसी छूट नहीं ले सकता। ले भी ले तो बनाये नहीं रह सकता। उकील बनने से पहले आप कहीं से भी तालीम की रसीदें (डिग्री) ले सकते हैं,  मान्य या फ़र्ज़ी यूनिवर्सिटी से और धड़ल्ले से अपनी प्रेक्टिस उका -लत या मुक्का -लात शुरू कर सकते हैं। पैसे की लात ज्यादा वजनी होती है। पुलिस का सिपाही बनने के लिए फिटनेस होना लाज़मी है ,ट्रेनिंग भी खासी कठोर  भुगतानी पड़ती है। उकाळात में ठेका लिया जाता है केस जितवाने का ,वकालत असल होती है। वकील इंटेलेक्चुअल कहलाते हैं उकील विविधता लिए होता है।पुलिस वाला हो सकता है किसी ख़ास जात -बिरादरी का न भी बन पाता हो उकील इस मामले में विविधत