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नज़्म :अभी तो मैं जवान हूं :(हफ़ीज़ जालंधरी; गायक :मल्लिका पुखराज

नज़्म :अभी तो मैं जवान हूं                            (हफ़ीज़ जालंधरी)                               गायक :मल्लिका पुखराज अभी तो मैं जवान हूं, अभी तो मैं जवान हूं । हवा भी ख़ुशगवार है, गुलों पे भी निखार है, तरन्नुमें हज़ार हैं, बहार पुर बहार है। कहाँ चला है साक़िया, इधर तो लौट, इधर तो आ, अरे ये देखता है क्या,  उठा सुबू, सुबू उठा,        (सुबू – सुराही) सुबू उठा, पयाला भर,  पयाला भरके दे इधर, चमन की सिम्त कर नज़र,  समाँ तो देख, बेख़बर।          ( सिम्त – तरफ़) वो काली काली बदलियाँ,  उफ़क़ पे हो गईं अयाँ,           (उफ़क़ – क्षितिज, अयाँ – दिखीं ) वो इक हजूमे मैक़शाँ,  है सू ए मैक़दां रवाँ,                                          (हजूमे मैक़शाँ – शराबियों की भीड़,पियक्कड़ों का झुण्ड )                                         (सू ए मैक़दा – शराबख़ाने की दिशा) ये क्या गुमाँ है बेगुमाँ,  समझ न मुझको नातवाँ,    (गुमाँ – महसूस ,नातवाँ – कमज़ोर) ख़याले ज़ोहद अभी कहाँ,  अभी तो मैं जवान हूं ॥      ( ज़ोहद – पुण्य, शराब छोड़ना) इबादतों का ज़िक्र

सुखी रहो निंदक जग माहीं, रोग न हो तन सारा। हमरी निंदा करने वाला, उतरै भवनिधि प्यारा। निंदक के चरनों की अस्तुति, भाखौं बारंबारा। चरनदास कह सुनियो साधो, निंदक साधक भारा।

संत चरणदास वि.सं. 1760 की भाद्रपद शुक्ल तृतीया, मंगलवार को मेवात के अंतर्गत डेहरा नामक स्थान में संत चरणदास का जन्म हुआ था। इनका पूर्व नाम रणजीत था। पांच-सात वर्ष की अवस्था में ही इन्हें कुछ आध्यात्मिक ज्ञान हो गया था। इनके गुरु का नाम शुकदेव था। संत चरणदास ने गुरु से दीक्षित होकर कुछ दिनों तक तीर्थाटन किया और बहुत दिनों तक ब्रजमंडल में रहकर श्रीमद्भागवत का अध्ययन किया। इनके अंतिम 50 वर्ष अपने मत के प्रचार में ही बीते। इन्होंने  सं. 1839 की अगहन सुदी 4 को दिल्ली में अपना देह त्याग किया। संत चरणदास को ग्रंथ रचना का अच्छा अभ्यास था। इनके द्वारा रचित 21 ग्रंथों का पता चलता है। ये ग्रंथ मुंबई और लखनउ से प्रकाशित हो चुके हैं। इनके मुख्य 12 ग्रंथों के प्रधान विषय योग साधना, भक्तियोग एवं ब्रह्म ज्ञान है। ये नैतिक शुद्धता के पूर्ण पक्षधर है और चित्त शुद्धि, प्रेम, श्रद्धा एवं सद्व्यवहार को उसका आधार मानते हैं। इनकी रचनाओें में इनकी स्वानुभूति के साथ-साथ अध्ययनशीलता का भी परिचय मिलता है। चरणदास (1703-1782ई.) चरणदास के पिता मुरलीधर राजस्थान के डेहरा गांव के रहने वााले ढूसर

भाव बोध सहित :अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरम्। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥1।।

भाव बोध सहित : अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरम्। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥1।। (मधुराधिपते अखिलं मधुरम्) अर्थ (Meaning in Hindi): अधरं मधुरं – श्री कृष्ण के होंठ मधुर हैं वदनं मधुरं – मुख मधुर है नयनं मधुरं – नेत्र (ऑंखें) मधुर हैं हसितं मधुरम् – मुस्कान मधुर है हृदयं मधुरं – हृदय मधुर है गमनं मधुरं – चाल भी मधुर है मधुराधिपते – मधुराधिपति (मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण) अखिलं मधुरम् – सभी प्रकार से मधुर है वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरम्। चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥2।। (मधुराधिपते अखिलं मधुरम्) अर्थ (Meaning in Hindi): वचनं मधुरं – भगवान श्रीकृष्ण के वचन (बोलना) मधुर है चरितं मधुरं – चरित्र मधुर है वसनं मधुरं – वस्त्र मधुर हैं वलितं मधुरम् – वलय, कंगन मधुर हैं चलितं मधुरं – चलना मधुर है भ्रमितं मधुरं – भ्रमण (घूमना) मधुर है मधुराधिपते – मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण (मधुराधिपति) अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः, पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ। न