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नज़्म :अभी तो मैं जवान हूं :(हफ़ीज़ जालंधरी; गायक :मल्लिका पुखराज





नज़्म :अभी तो मैं जवान हूं

                           (हफ़ीज़ जालंधरी)
                              गायक :मल्लिका पुखराज

अभी तो मैं जवान हूं, अभी तो मैं जवान हूं ।
हवा भी ख़ुशगवार है, गुलों पे भी निखार है,
तरन्नुमें हज़ार हैं, बहार पुर बहार है।
कहाँ चला है साक़िया, इधर तो लौट, इधर तो आ,
अरे ये देखता है क्या, 

उठा सुबू, सुबू उठा,        (सुबू – सुराही)
सुबू उठा, पयाला भर, 

पयाला भरके दे इधर,
चमन की सिम्त कर नज़र,

 समाँ तो देख, बेख़बर।          ( सिम्त – तरफ़)
वो काली काली बदलियाँ, 

उफ़क़ पे हो गईं अयाँ,           (उफ़क़ – क्षितिज, अयाँ – दिखीं )
वो इक हजूमे मैक़शाँ, 

है सू ए मैक़दां रवाँ, 

                                        (हजूमे मैक़शाँ – शराबियों की भीड़,पियक्कड़ों का झुण्ड )
                                        (सू ए मैक़दा – शराबख़ाने की दिशा)
ये क्या गुमाँ है बेगुमाँ, 

समझ न मुझको नातवाँ,    (गुमाँ – महसूस ,नातवाँ – कमज़ोर)
ख़याले ज़ोहद अभी कहाँ, 

अभी तो मैं जवान हूं ॥      ( ज़ोहद – पुण्य, शराब छोड़ना)

इबादतों का ज़िक्र है,

 निजात की भी फ़िक्र है,    (निजात – मुक्ति )
जुनून है सवाब का, 

ख़याल है अज़ाब का,        (सवाब – सत्कर्म का फल, अज़ाब – पाप का फल)
मगर सुनो तो शैख़जी, 

अजीब शै हैं आप भी !      (शै – चीज़)
भला शबाबो आशिक़ी ,

अलग हुए भी हैं कभी?
हसीन जल्वारेज़ हों, 

अदाएं फ़ितनाख़ेज़ हों,     (जल्वारेज़ – शोभायमान, फ़ितनाख़ेज़ – शरारत पूर्ण)
हवाएं इत्रबेज़ हों ,

तो शौक़ क्यों न तेज़ हों,  

                                    (इत्रबेज़ - सुगंधित)
निगार हाय फ़ितनागर, 

कोई इधर, कोई उधर, 

                                  (निगार – शोभा, फ़ितनागर – शरारती)
उभारते हों ऐश पर तो ,

क्या करे कोई बशर,       (बशर – व्यक्ति,वासिन्दा )
चलो जी क़िस्सा मुख़्तसर, 

तुम्हारा नुक़्ताए नज़र,      (मुख़्तसर – संक्षेप, नुक़्ता ए नज़र – सोच )
दुरुस्त है तो हो मगर, 

अभी तो मैं जवान हूं ॥

ना ग़म कशूदो बस्त का, 

बुलंद का ना पस्त का,       ( कशूद – खुला, बस्त – बंधा )
ना बूद का न हस्त का, 

ना वादा ए अलस्त का,       (बूद – भूतकाल, हस्त – वर्तमान,)
                                        (अलस्त – सृष्टि काल)
उमीद और यास गुम, 

हवास गुम, क़यास गुम,          (यास – निराशा, हवास – चेतना, क़यास – अंदाज़ा )
नज़र से आसपास गुम, 

हमा बजुद गिलास गुम।        (हमा – सब, बजुद – अलावा)
                                           (इन सब के अलावा)
ना मै(मय) में कुछ कमी रहे,   (मय -मदिरा ,सुरा ,शराब )

 क़दा से हमदमी रहे,             (क़दा – जाम, हमदमी – दोस्ती)
निशस्त ये जमी रहे, 

यही हमाहमी रहे,                  (निशस्त – महफ़िल, हमाहमी – चहल पहल)
वो राग छेड़ मुतरिबा,

 तरब फ़ज़ा, अलम रुबा,         (मुतरिबा – गायिका, तरब फ़ज़ा– खुशी बढ़ाने वाला)
असर सदा ए साज़ का, 

जिगर में आग दे लगा,           (अलम रुबा - उदास, सदा – पुकार)
हर इक लब पे हो सदा, 
न हाथ रोक साक़िया,
पिलाये जा, पिलाये जा, 
पिलाये जा, पिलाये जा।
अभी तो मैं जवान हूं ॥

ये गश्त कोहेसार की, 
ये सैर जू ए वार की,            (गश्त – घूमना, कोहेसार – पहाड़,)
                                         (जू ए वार – झरना)
ये बुलबुलों के चहचहे, 
ये गुल रुख़ों के क़हक़हे,      ( गुल – फूल, रुख़ – चेहरा)
किसी से मेल हो गया,
 तो रंजो फ़िक्र खो गया,
कभी तो वक़्त सो गया,
 ये हँस गया वो रो गया,
ये इश्क़ की कहानियाँ, 
ये रस भरी जवानियाँ,
उधर से मेहरबानियाँ, 
इधर से लन्तरानियाँ।       ( लन्तरानियाँ – अतिशयोक्ति,गर्वोक्तियाँ )
यो आसमान ये ज़मीं, 
नज़ारा हाए दिलनशीं,
उन्हें हयात आफ़रीं, 
भला मैं छोड़ दूं यहीं ?      ( आफ़रीं – प्रशंसनीय)
है मौत इस क़दर क़रीब, 
मुझे न आयेगा य़क़ीं,
नहीं नहीं अभी नहीं, 
नहीं नहीं अभी नहीं ।
अभी तो मैं जवान हूं॥

विशेष :ये मय इश्क की है ,प्यार की मदिरा है ,मौसमें बहार है ,बसंती बयार है ,इधर तो आ इधर तो आ ,चली कहाँ। जैसा मान वैसी काया। सोच से  बुढ़ाता है शरीर। पॉज़िटिव रहिये इश्के हकीकी ,इश्क मज़ाज़ी को यकसां रखिये। ये आशिकी ये माशुकी हमीं से है। हम ही से ये मौसिम सुहाना है। बसंत राग हम से है बसंत भी हमीं से है। 

Basically there are two types of ishq mentioned in urdu poetry. First one is ishq e haqeeqi which means love for Allah as He is the absolute reality. Second is ishq e majazi. Majazi means allegoric ( that means resembling something, not real). So, ishq e majazi means love for a specific human being and it is called majazi as it is not not real and strong as ishq e haqeeqi can be. In urdu poetry, ishq e majazi has also been sometimes referred to one’s homeplace, country or some institution.

इस नज़्म की रवायत दोनों है ,

मैं तुझमें हूँ तू मुझमे है ,

अब इससे आगे क्या कहूँ। 

अभी तो मैं जवान हूँ।  


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Mallika Pukhraj rendering Abhi to Main Jawan Hoon live

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