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कबीर कहा गरबियो, इस जोवन की आस । केसू फूले दिवस दोइ, खंखर भये पलास ।।

ज्ञान बिरह कौ अंग -कबीर  हिरदा भीतर  दौं  बलै ,धूवाँ प्रगट न होइ , जाकै लागी सो लखै ,कै जिहि लाई सोइ।  Inside the heart there burns the fire , But nowhere the smoke is visible , He only feels the burn who's burnt , Or, he who did the fire enkindle. भावसार : शब्दार्थ : हिरदा- हृदय। भीतरि-  के अंदर।  दौं- दावाग्नि, आग, जंगल की आग। बलै-  जल रही है। धूवाँ  - धुआँ। प्रगट - प्रकट। न होइ-  नहीं होता है। जाके लागी -  जिसको लगी है। लखै - देखे। के जिहि  -या जो। लाई -  लागी। कबीर कहते हैं कि  हृदय में अनवरत रूप से विरह की दावाग्नि जलती रहती है. इस निरंतर जलने वाली आग का  धूआँ  बाहर किसी को  दृष्टिगोचर नहीं होता है. ईश्वर प्रेम अद्भुत  होता है जिसका वर्णन अकथनीय होता है और नितांत ही व्यक्तिगत भी होता है। इसे या तो साधक समझ सकता है या फिर ईश्वर ही। ईश्वर प्रेमी के हृदय में निरंतर  दावाग्नि जलती रहती है।  इसका धुआँ बाहर प्रकट नहीं होता है जिससे भाव है की उसका प्रदर्शन, पीड़ा बाहर किसी को पता नहीं चल पाती है। गुरु ही ईश्वर का रूप होता है, अतः इसे गुरु/ईश्वर या भक्त ही जान सकता है। विरह की पीड़ा को

रहिमन वे नर मर चुके जो कहीं माँगन जाएँ , उन ते पहले वे मुए जिन मुख निकसत नाएँ (व्याख्या सहित)

रहिमन वे नर मर चुके ,जे कहुँ माँगन जाहिं , उनते पाहिले वे मुए ,जिन मुख निकसत नाहिं।  भावसार :भीख मांगना मरने से बदतर है। जो व्यक्ति भिक्षाटन करके भरण पोषण करता है वह मरे हुए जैसा ही है लेकिन जो व्यक्ति कहता है कुछ नहीं है भिक्षा होते हुए भी देने से इंकार कर देता है वह मांगने वाले से भी बदतर है। यहां भरणपोषण के लिए श्रम  की महत्ता की ओर  संकेत है।जगत में मांगने से मान घटता है पुरुषार्थ करने से मान में वृद्धि होती है।  सन्देश :व्यक्ति पुरुषार्थ करके खाये आदमी। हराम का नहीं।  माँगत माँगत मानि घटै ,प्रीति घटै नित के घर जाई , औछे के संग में बुद्धि घटै ,क्रोध घटै मन के समुझाई। तेज़ घटै पर नारि के संग में ,बुद्धि घटै बहुभोजन खाई।  दयाल कहै सुनि रे मन मूरख ,पाप घटै हरि के गुन  गाई।   भावार्थ  -जगत में किसी के आगे हाथ फैलाने से मान घटता है ,रोज़ -रोज़ किसी के घर जाने से प्रेम घटता है ,छिछोरे हलकी सोच और निगाह वाले अदूरदर्शी निकृष्ट व्यक्ति के संग से मेधा का ह्रास होता है ,परनारी के संग आदमी का बलवीर्य  उसकी साख तेज़ और ओज़ समाप्त होने लगता है। लेकिन जो हरिका नाम स्मरण करता है उसके तमाम क्लेशों पापकर