रहिमन वे नर मर चुके ,जे कहुँ माँगन जाहिं ,
उनते पाहिले वे मुए ,जिन मुख निकसत नाहिं।
भावसार :भीख मांगना मरने से बदतर है। जो व्यक्ति भिक्षाटन करके भरण पोषण करता है वह मरे हुए जैसा ही है लेकिन जो व्यक्ति कहता है कुछ नहीं है भिक्षा होते हुए भी देने से इंकार कर देता है वह मांगने वाले से भी बदतर है। यहां भरणपोषण के लिए श्रम की महत्ता की ओर संकेत है।जगत में मांगने से मान घटता है पुरुषार्थ करने से मान में वृद्धि होती है।
सन्देश :व्यक्ति पुरुषार्थ करके खाये आदमी। हराम का नहीं।
माँगत माँगत मानि घटै ,प्रीति घटै नित के घर जाई ,
औछे के संग में बुद्धि घटै ,क्रोध घटै मन के समुझाई।
तेज़ घटै पर नारि के संग में ,बुद्धि घटै बहुभोजन खाई।
दयाल कहै सुनि रे मन मूरख ,पाप घटै हरि के गुन गाई।
भावार्थ -जगत में किसी के आगे हाथ फैलाने से मान घटता है ,रोज़ -रोज़ किसी के घर जाने से प्रेम घटता है ,छिछोरे हलकी सोच और निगाह वाले अदूरदर्शी निकृष्ट व्यक्ति के संग से मेधा का ह्रास होता है ,परनारी के संग आदमी का बलवीर्य उसकी साख तेज़ और ओज़ समाप्त होने लगता है। लेकिन जो हरिका नाम स्मरण करता है उसके तमाम क्लेशों पापकर्मों का नाश हो जाता है।
पर नारी पैनी छुरी, विरला बांचै कोय।
कबहुं छेड़ि न देखिये, हंसि हंसि खावे रोय।।
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