https://nikkyjain.github.io/jainDataBase/poojas/06_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0/25_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE--%E0%A4%AA%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%A4-%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8/html/index.html भाषाकार : कविश्री भूधरदास (दोहा) बीज राख फल भोगवे, ज्यों किसान जग-माँहिं | त्यों चक्री-नृप सुख करे, धर्म विसारे नाहिं ||१|| अर्थात चक्रवर्ती राजा जो राजाओं का भी राजा होता है राजपाट के सुख तो भोगे लेकिन धर्मपूर्वक आचरण करते हुए ही। (जोगीरासा व नरेन्द्र छन्द) इहविधि राज करे नरनायक, भोगे पुण्य-विशालो | सुख-सागर में रमत निरंतर, जात न जान्यो कालो || सुख का उपभोग करते वक्त खासकर अच्छे दिनों में समय के बीतने का भान ही नहीं होता ऐसे ही सुख के सागर में नरपति डूबे लेकिन आचरण की शुचिता बनाये रहे। वैराग्यपूर्वक इसका उपभोग करे। (जात न जान्यो कालो का अर्थ -यहां समय के व्यतीत होने का भान न होने से है ) एक दिवस शुभ कर्म-संजोगे, क्षेमंकर मुनि वं...