ज़हर की पुड़िया और भारतीय लोकतंत्र सुना है इन दिनों केंद्रीय सुल्तानों ने भारत की फ़िज़ा में ज़हर घोल दिया है। भारतीय लोकतंत्र विषाक्त हो गया है इस ज़हर को बे -असर करने के लिए एक मल्लिका ने शिवसेना से समझौता किया है। सुना यह भी गया है फडणवीस जी ने लोकतंत्र को बंधक बना लिया था। यह तो वही बात हो गई जिसे लोकतंत्र के इम्तिहान में सबसे ज्यादा नंबर मिले वह फस्ट नहीं आया है। इस परीक्षा में हार जाने वाले तीन फिसड्डी मिलकर कह रहे हैं फ़स्ट हम आएं हैं क्योंकि हमारे कुल तीनों के मिलाकर नंबर ज्यादा हैं। इस मलिका को विशेष कुछ पता नहीं है अपने आपको 'आज़ाद 'कहने वाला एक 'गुलाम ' जो अपने को नबी भी बतलाता है जो कुछ लिखकर दे देता है यह वही बोल देती है। रही सही कसर एक 'पटेल' पूरी कर देते हैं जो अहमद भी हैं और पटेल भी। वह सेकुलर ताकतों का गठ जोड़ कहा जाता है। जहां हारे हुए तीन जुआरी सेकुलर हो जाते हैं शकुनी की तरह पासे फेंक कर। जीते हुए साम्प्रदायिक कहलाते हैं इनकी जुबां में। आज यह सवाल पहले से ज्यादा मौज़ू हो गया है : भारत में कौन कहाँ कब 'सेक...