चलो एक मील चलकर देखें ,
घर में बंद लोगों से मिलकर देखें।
-------------------- श्री मुरारी लाल मुद्गिल ,एन -५७७ ,जलवायुविहार सेक्टर २५ ,नोयडा -२०१ ३०१
कहीं रूठ गया हो न भाईचारा ,
कुंठित होगा घर में बैठा बेचारा।
मंदिर में बुक करवाई थी उसने ढोलक ,
बहुत मुद्द्त के बाद होने वाली थी रौनक।
लग्न पत्रिका होने थे ,हल्दी, तेल, बान ,
वस्त्राभूषण लेने देने के, गिनती पहचान।
उसने रखा था रामायण का अखंड पाठ ,
उसकी भी होनी थी शादी की वर्ष गांठ ,
वार्षिक श्राद्ध अमावस्या(मावस ) को माँ का करना था ,
गई पूर्णिमा (पूनों ) को दादाजी का पिंड भरना था।
बहुत दिनों से नहीं लाँघी थी मंदिर की देहरी ,
लबालब लोगों से सजते बाज़ारों की फेरी।
बहुत दिनों से मिले नहीं अब मन करता है ,
स्पर्श कहीं हो न जाए सच कहूँ तन डरता है।
इधर उधर देखा प्रकृति को कुछ घबराई सी थी ,
उतरा चेहरा रंगत गायब आँखें अलसाई सी थीं।
रूठी थी वो मानव ने जब से सजना को छोड़ा है
ज्ञान शान और अहंकार से नाता जोड़ा है।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
'लोकडाउन' एक बिम्ब एक कसक लिए है यह सद्य रचना मुद्गिल साहिब की जो अक्सर अपने पाठकों को कुछ नया देते रहते हैं।भोगा उन्होंने है तदानुभूति आपकी मेरी हम सबकी है। मुश्किलों के इस दौर में समझदार सावधानी और परिस्थितियों के साथ सहर्ष चलना आज की ज़रूरत ,तकाज़ा है।
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