जबकि अनेक रूपा नारी कहीं सुदर्शना है तो कहीं नाभि -दर्शना परिधान की तरह आकर्षक।कहीं मुग्धा कहीं प्रगल्भा ,कहीं शमिता तो कहीं वनिता। कहीं सद्यस्नाता सौंदर्य तो कहीं वह विज्ञापन में वैसे ही आकर्षक है जैसे डिन्नर टेबिल पर करीने से सज्जित सलाद प्लेट । कहीं दुर्गा है तो कहीं रणचणडी ,कहीं अबला कहीं सबला। और कहीं सिर्फ बला.
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पति -पत्नी भले उपाधियाँ हैं न कोई जन्म से पति होता है न पत्नी। अनेक उत्त्तर शादी पुरुष और नारी इन उपाधियों को ही यथार्थ मानने लगते हैं। जीने लगते हैं बने बनाये सामाजिक सांचे में एक दूसरे को तौल कर। खरे उतरे आप तो चांदी वरना खोट स्वर्ण की।
जबकि अनेक रूपा नारी कहीं सुदर्शना है तो कहीं नाभि -दर्शना परिधान की तरह आकर्षक।कहीं मुग्धा कहीं प्रगल्भा ,कहीं शमिता तो कहीं वनिता। कहीं सद्यस्नाता सौंदर्य तो कहीं वह विज्ञापन में वैसे ही आकर्षक है जैसे डिन्नर टेबिल पर करीने से सज्जित सलाद प्लेट । कहीं दुर्गा है तो कहीं रणचणडी ,कहीं अबला कहीं सबला। और कहीं सिर्फ बला.
इसी दरमियान हमें पत्नी -नंदन ,पति -पूजक ,पत्नी दुर्गेशों के दर्शन का ही नहीं संसर्ग का भी सुख सौभाग्य प्राप्त हुआ। पता चला पति शब्द अनेक अर्थच्छटाएँ छिपाए है।
जबकि पत्नी रूपा पर्याय की इतनी भाववाचक भंगिमाएं नहीं हैं। पति- प्रताड़ित ,पति -पीड़िता भी बे -शुमार हैं मेरे हिन्दुस्तान में। पर पति -खिजाऊ भी कम नहीं हैं।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
खीझकर रत्नावली ने तुलसीदास को यही शब्द सुनाये थे। यह दोहा सुनते ही तुलसीदास पत्नी को वहीं छोड अपने गाँव राजापुर लौट गये।कहते हैं कथा वाचक तुलसी की रत्नावली से बेहद की प्रीती थी जब उनका भाई उन्हें तुलसी की अनुपस्तिथि में अपने गाँव ले गया तो पत्नी वियोग में बेकल तुलसी कहते हैं उफनती बाढ़ में बहती लाश का टेका लिए रत्नावली के पास पहुँच गए। भीषण बरसात की रात में सांप को रस्सी समझ तुलसी उसी के सहारे दूसरी मंज़िल पे सोई पत्नी के कक्ष में खिडकी से कूद गए। कह सकते हैं तुलसी पहले पत्नी पीड़ित हैं।
पहला पत्नी नंदन कौन हैं यह पता लगाना शोध का विषय है।
जबकि अनेक रूपा नारी कहीं सुदर्शना है तो कहीं नाभि -दर्शना परिधान की तरह आकर्षक।कहीं मुग्धा कहीं प्रगल्भा ,कहीं शमिता तो कहीं वनिता। कहीं सद्यस्नाता सौंदर्य तो कहीं वह विज्ञापन में वैसे ही आकर्षक है जैसे डिन्नर टेबिल पर करीने से सज्जित सलाद प्लेट । कहीं दुर्गा है तो कहीं रणचणडी ,कहीं अबला कहीं सबला। और कहीं सिर्फ बला.
इसी दरमियान हमें पत्नी -नंदन ,पति -पूजक ,पत्नी दुर्गेशों के दर्शन का ही नहीं संसर्ग का भी सुख सौभाग्य प्राप्त हुआ। पता चला पति शब्द अनेक अर्थच्छटाएँ छिपाए है।
जबकि पत्नी रूपा पर्याय की इतनी भाववाचक भंगिमाएं नहीं हैं। पति- प्रताड़ित ,पति -पीड़िता भी बे -शुमार हैं मेरे हिन्दुस्तान में। पर पति -खिजाऊ भी कम नहीं हैं।
खीझकर रत्नावली ने तुलसीदास को यही शब्द सुनाये थे। यह दोहा सुनते ही तुलसीदास पत्नी को वहीं छोड अपने गाँव राजापुर लौट गये।कहते हैं कथा वाचक तुलसी की रत्नावली से बेहद की प्रीती थी जब उनका भाई उन्हें तुलसी की अनुपस्तिथि में अपने गाँव ले गया तो पत्नी वियोग में बेकल तुलसी कहते हैं उफनती बाढ़ में बहती लाश का टेका लिए रत्नावली के पास पहुँच गए। भीषण बरसात की रात में सांप को रस्सी समझ तुलसी उसी के सहारे दूसरी मंज़िल पे सोई पत्नी के कक्ष में खिडकी से कूद गए। कह सकते हैं तुलसी पहले पत्नी पीड़ित हैं।
पहला पत्नी नंदन कौन हैं यह पता लगाना शोध का विषय है।
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