मनमानी का नया दौर ,'सड़क पर कब्ज़ा करेंगे ,प्लाट काटेंगे '-एक खबर मुख पृष्ठ पर (दैनिक जागरण ,नै दिल्ली १२ मार्च ,२०२१ )-किसान आंदोलन एक और करतब
मनोविज्ञान और मनोरोग विज्ञान में इसे कहते हैं अपनी ओर ध्यान खींचने की कोशिश बोले तो अटेंशन सीकिंग बीहेवियर . मान न मान मैं तेरा मेहमान ,अब जबकि सरकार और समाज इन आंदोलन जीवी विघटनकारी अड़ियल टट्टुओं को कोई भाव नहीं दे रहा है ये अपनी ओर तवज़्ज़ो खींचने के लिए कई अज़ीबोकारीब निहायत बे -वक़ूफ़ाना हरकतें कर रहे हैं।अचानक इनमें से कई कथित स्वनाम धन्य किसान नेताओं को ये तत्वज्ञान हुआ ,ये जन- नायक बन वोटर्स का नेतृत्व भी कर सकते हैं। क्या खुशफहमी है ,अपने मुंह मिया मिठ्ठू बनना है , नाम इन बरगलाये हुए राजनीति के बिकाऊ भकुओं का कोई भी हो टकैत ,टिकैत ,योगेंद्र ,दर्शन पाल सिंह ,मंजीत राय या इनामी सिंह जो भी ,काम सबका एक ही है -विघटन ,संविधानिक संस्थाओं सत्ताओं के प्रति हिकारत का भाव ,खुद को आप औरों को तू कहने की केजरीवालीय कोशिश।केंद्रीय सत्ता को निरंतर उकसाना इसे ही कहते हैं -आ बैल मुझे मार ,जिसका अर्थ है -बैल तू सावधान हो जा मैं आ रहा हूँ।
ये तमाशाई बुल बिना ला कपड़ा दिखाए ही भड़क रहे हैं बिदक रहे हैं ,दुलत्ती मार रहे हैं।
राजनीति के भकुओं को एड़ी से चोटी तक का ज़ोर लगा लो ,कुत्ते से लेकर हाथी की टट्टी खाने का प्रदर्शन करके देख लो -किसान हितेषी कृषि क़ानून ज़ारी रहेंगे।
पिछले करीब साढे 3 महीनों से नए कृषि कानून का विरोध कर रहे किसान अब भी दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। सर्दी और बारिश के दिनों में ये किसान तिरपाल और टीन के शेड बना कर रह रहे थे, लेकिन गर्मी के दिनों में इसमें रह पाना मुश्किल है।

सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर बनने लगे ईंट वाले घर
हाइलाइट्स:
- किसानों बोले, मांग पूरी होने तक मोर्चा खाली नहीं करेंगे
- इन कमरों की लंबाई करीब 8 से 10 फुट तक रखी गई है
- इन कमरों में बाकायदा पंखे, लाइट लगाने की सुविधा होगी
- किसानों ने बताया, इसमें कूलर लगाने का भी बंदोबस्त होगा
- ऊपर पराली की छत बिछाई गई है, जो गर्मी में ठंडक देगी
राजेश पोद्दार, सिंघु/ टीकरी बॉर्डर
'कड़कड़ाती ठंड और बारिश तो हमने टपकती तिरपालों में बिता दी, आने वाले दिन चिलचिलाती धूप और पसीने छुड़ा देने वाली गर्मी के होंगे। जो प्लास्टिक की इन तिरपालों को भी पिघला देगी। दूसरी तरफ सरकार हमारी बात सुनने तक को तैयार नहीं है। हमने तो पहले ही कहा था कि हम यहां से तबतक नहीं लौटेंगे, जब तक कि हमारी मांगें नहीं मानी जाएंगी। ऐसे में अब हमने ईंट के घर बनाने शुरू कर दिए हैं। यह किसानों का पक्का रैन बसेरा होगा, डबल स्टोरी घर होंगे।' यह कहना है सिंघु बॉर्डर के उन किसानों का जो इन दिनों नैशनल हाइवे-1 की सड़क पर ही ईंटों और सीमेंट से घर बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
किसान संगठनों का ऐलान, 26 मार्च को भारत बंद
यह नजारा सिर्फ सिंघु बॉर्डर पर ही नहीं, बल्कि टीकरी बॉर्डर पर भी देखने को मिल रहा है। यहां कई ऐसी झोपड़ी बन गई, जो ईंटों और सीमेंट से बनी हुई है। उसके ऊपर पराली की छत बिछाई गई है, जो गर्मी में ठंडक का अहसास देगी। किसानों का कहना है कि यह एक वातानुकूल झोपड़ी (घर) होगा। इसकी दीवारें ईंट की हैं, लेकिन छत पराली और घास-भूसे की होगी। तपती धूप में भी इसके नीचे बैठे लोगों को ठंडक का अहसास होगा।

बॉर्डर पर पक्के कमरों की तैयारी
Kisan Andolan : सरकार ने संसद में बताया, दिल्ली-UP बॉर्डर पर कोई सड़क नहीं खोदी गई
पिछले करीब साढे 3 महीनों से नए कृषि कानून का विरोध कर रहे किसान अब भी दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। सर्दी और बारिश के दिनों में ये किसान तिरपाल और टीन के शेड बना कर रह रहे थे, लेकिन गर्मी के दिनों में इसमें रह पाना मुश्किल है। लिहाजा यहां पर अब बड़ी तादाद में परमानेंट स्ट्रक्चर बनाने का काम किया जा रहा है। अमृतसर से आए गुरमीत सिंह ने बताया कि यहां पर बड़ी संख्या में दिन-रात ट्रैक्टरों के माध्यम से पंजाब और हरियाणा के कई शहरों से ईंट और सीमेंट लाने का काम लगातार जारी है। दिन-रात हमारे बीच में ही काम करने वाले मिस्त्री इन घरों को बनाने का काम कर रहे हैं।

गाजीपुर पर गर्मी से निपटने का इंतजाम करते किसान
किसानों के मुद्दे का हल राजनीति से नहीं, आंदोलन से निकलेगा: राकेश टिकैत
अगर जल्द ही सरकार हमारी मांगों को नहीं मानती है तो यहां पर दर्जनों घर इसी तरह के दिखाई देंगे। जब तक हमारी मांगें नहीं मानी जातीं, हम अपने मोर्चे को खत्म नहीं होने देंगे। सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर बनाए जा रहे इन कमरों की लंबाई करीब 8 से 10 फुट तक रखी गई है, जिसमें बाकायदा खिड़की और उसमें पंखे, लाइट लगाने की भी सुविधा होगी। किसानों ने बताया कि इसमें कूलर लगाने का भी बंदोबस्त होगा। किसानों का कहना है कि अब यह प्रदर्शन स्थल ही उनका घर-द्वार है। जब तक हम यहां पर डटे रहेंगे, हम अपने सुविधा के अनुसार चीजों को बढ़ाते ही रहेंगे।पिछले करीब साढे 3 महीनों से नए कृषि कानून का विरोध कर रहे किसान अब भी दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। सर्दी और बारिश के दिनों में ये किसान तिरपाल और टीन के शेड बना कर रह रहे थे, लेकिन गर्मी के दिनों में इसमें रह पाना मुश्किल है।

सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर बनने लगे ईंट वाले घर
हाइलाइट्स:
- किसानों बोले, मांग पूरी होने तक मोर्चा खाली नहीं करेंगे
- इन कमरों की लंबाई करीब 8 से 10 फुट तक रखी गई है
- इन कमरों में बाकायदा पंखे, लाइट लगाने की सुविधा होगी
- किसानों ने बताया, इसमें कूलर लगाने का भी बंदोबस्त होगा
- ऊपर पराली की छत बिछाई गई है, जो गर्मी में ठंडक देगी
राजेश पोद्दार, सिंघु/ टीकरी बॉर्डर
'कड़कड़ाती ठंड और बारिश तो हमने टपकती तिरपालों में बिता दी, आने वाले दिन चिलचिलाती धूप और पसीने छुड़ा देने वाली गर्मी के होंगे। जो प्लास्टिक की इन तिरपालों को भी पिघला देगी। दूसरी तरफ सरकार हमारी बात सुनने तक को तैयार नहीं है। हमने तो पहले ही कहा था कि हम यहां से तबतक नहीं लौटेंगे, जब तक कि हमारी मांगें नहीं मानी जाएंगी। ऐसे में अब हमने ईंट के घर बनाने शुरू कर दिए हैं। यह किसानों का पक्का रैन बसेरा होगा, डबल स्टोरी घर होंगे।' यह कहना है सिंघु बॉर्डर के उन किसानों का जो इन दिनों नैशनल हाइवे-1 की सड़क पर ही ईंटों और सीमेंट से घर बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
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यह नजारा सिर्फ सिंघु बॉर्डर पर ही नहीं, बल्कि टीकरी बॉर्डर पर भी देखने को मिल रहा है। यहां कई ऐसी झोपड़ी बन गई, जो ईंटों और सीमेंट से बनी हुई है। उसके ऊपर पराली की छत बिछाई गई है, जो गर्मी में ठंडक का अहसास देगी। किसानों का कहना है कि यह एक वातानुकूल झोपड़ी (घर) होगा। इसकी दीवारें ईंट की हैं, लेकिन छत पराली और घास-भूसे की होगी। तपती धूप में भी इसके नीचे बैठे लोगों को ठंडक का अहसास होगा।

बॉर्डर पर पक्के कमरों की तैयारी
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पिछले करीब साढे 3 महीनों से नए कृषि कानून का विरोध कर रहे किसान अब भी दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। सर्दी और बारिश के दिनों में ये किसान तिरपाल और टीन के शेड बना कर रह रहे थे, लेकिन गर्मी के दिनों में इसमें रह पाना मुश्किल है। लिहाजा यहां पर अब बड़ी तादाद में परमानेंट स्ट्रक्चर बनाने का काम किया जा रहा है। अमृतसर से आए गुरमीत सिंह ने बताया कि यहां पर बड़ी संख्या में दिन-रात ट्रैक्टरों के माध्यम से पंजाब और हरियाणा के कई शहरों से ईंट और सीमेंट लाने का काम लगातार जारी है। दिन-रात हमारे बीच में ही काम करने वाले मिस्त्री इन घरों को बनाने का काम कर रहे हैं।

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