वो चीखें नहीं थप्पड़ की अनुगूँजे थीं। पूरे ६६ घंटा मेडिकल कॉलिज का जनरल वार्ड इन बेहद की जन -पीड़ा बनीं चीखों को झेलता रहा। पूरा वार्ड इन चीखों का सहभोक्ता बन चुका था। अकसर होता है ये छोटी सी समझी गई ज़िंदगी में जब आपकी पीड़ा उन तमाम लोगों ,चश्मदीदों को भी तदानुभूत पीड़ा रूप होने लगती है जो कभी आपको जानते ही नहीं थे। सड़क पर पड़े दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को छटपटाते देख यही तदानुभूति मुझे आपको हम सबको होने लगती है। थप्पड़ एक था उसके सहभोक्ता अनेक थे। वार्ड में भर्ती मरीज़ भी उनमें शरीक थे। वह औरत बेतरह झुलस गई थी डॉक्टरों के अनुसार ९५ फीसद बर्न्स थे। जले के थर्ड डिग्री घावों से प्रोटीन रिसने लगा था. हाँ जांच हुई थी इस वाकये की उस शख्स की शादी के सत्रह बरस बाद भी। दो -दो सबडिविजनल मजिस्ट्रेट खोद खोद के उस झुलस चुकी महिला से पूछ रहे थे जो डिलीरियम में थी जबकि इस स्थिति में होश का लेवल पांच फीसद ही रहता है ऐसा स्वास्थ्य कर्मियों ने बतलाया था। 'तो तुम्हारे ऊपर केरोसिन फेंका किसने था सामने से या पीछे से कैसे क...