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चीखें

वो चीखें नहीं थप्पड़ की अनुगूँजे थीं। पूरे ६६ घंटा मेडिकल कॉलिज का जनरल वार्ड इन बेहद की जन -पीड़ा बनीं चीखों को झेलता रहा। पूरा वार्ड इन चीखों का सहभोक्ता  बन चुका था। अकसर होता है ये छोटी सी समझी  गई ज़िंदगी में जब आपकी पीड़ा उन तमाम लोगों ,चश्मदीदों को भी तदानुभूत पीड़ा रूप  होने लगती है जो कभी आपको जानते ही नहीं थे। सड़क पर पड़े दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को छटपटाते देख यही तदानुभूति मुझे आपको हम सबको होने लगती है। 


'तो तुम्हारे ऊपर केरोसिन फेंका किसने था सामने से या पीछे से कैसे किसने फेंका था। कुछ तो याद करो।' -पूछ रहे थे दोनों मजिस्ट्रेट। आज़िज़ आकर इस लम्बी पूछताछ से उस विदूषी भली सी महिला ने तुतलाते हुए यही कहा था -आप अपनी  जुबान अपने शब्द मेरे मुंह में उड़ेल रहे हैं ।मुझे नहीं पता आग कब कैसे लगी मैंने खुद को जमीन पे पलटी खाते देखा बुझाने की भरसक कोशिश की। पैरहन का हर रेशा मेरे झुलसे हुए गोस्त का हिस्सा बन चुका था। मैं कैसे यहां पहुंची मुझे नहीं मालूम। 

पाठकों आप जानते हैं ये मरदाना खुन्नस किस्म -किस्म की होती है, कोरोना वायरस के वेरिएंट सी। यूं मर्द बड़ा दम भरते है तरक्की पसंद होने का अपनी फिराक-दिली खुलेपन का। दोस्तों के अंग संग शराब पिएंगे बीवी से ताज़ा चखना तैयार कर वायेंगे। लेकिन यही मर्द अपने किसी दोस्त के काँधे पे बीवी को सिरहाना बनाने की दास्ताँ सुन भर लें। तो आग बबूला हो  बैठें - तुझे  अब एक और खसम चाहिए। प्रतिवाद करने सुनने पर इनका हाथ उठ जाएगा।   

उन्हीं में से एक छात्र यहा औत्सुक्य  वश उपस्थित था। उसे पूरा शक था। ये सब इस सजेधजे सूट धारी प्रोफ़ेसर का ही किया धरा होगा।स्साला कित्ती तसल्ली बेफिक्री से पेट्रोल पम्प इलाके की मशहूर दूकान से पान लेकर चबा रहा था। कश पे कश उड़ा था। जबकि इसकी बीवी बेहद झुलसी हुई अवस्था में चीखों के अंतिम तौर पर  चुक जाने  का इंतज़ार कर रही है। सचमुच में वह रो पड़ा था। प्रोफ़ेसर की आँखों में आंसू नहीं था  एक भी।उसी ने बतलाया था सर मैं सचमुच आप पर ही शक कर रहा था। मौत हमारे लिए एक संख्या भर होती है वार्ड नंबर बेड नंबर होता है। मौत रोज़ ही यहां देखते हैं इतनी दर्दनाक मौत इससे पहले .. कहते कहते उसका गला रुंध गया।  

 उसी ने ये सब खुलकर बतलाया था जो इत्तेफाकन  उस वक्त रेज़िडेंट था।पूछताछ का साक्षी था।  


हाँ वह महिला मरते मरते भी प्रोफ़ेसर को अभयदान दे गई थी। उसने प्रोफ़ेसर के कान में बड़बड़ाया था -फ़िज़िक्स की किताब ....ड्राइंग की गोलमेज़। 

वह बे -तहाशा घर की ओर  लौटा था। बच्चे  पड़ोसी के संरक्षण में थे। उसने किताबों के पन्नो में मौजूद वह अंतिम पत्र बेसब्री से सांस रोके पढ़ा ,पत्नी ने इसी का इशारा किया था।   

"मुझे कोई अदृश्य शक्ति चला रही है मैं अवश हूँ। आपसे किसी अन्य से कोई शिकायत नहीं। हाँ आपने मुझे अच्छे से रखा है। कोई मुझे काबू किये है। "

आग लगी थी या लगाईं गई किसी ने नहीं देखा। बच्चे स्कूल में थे प्रोफ़ेसर अपने कालिज में। सूचना किसी और ने आकर दी। सर आप मेडिकल के आपात विभाग में पहुंचिए। आपके घर में आग लग गई थी।आपकी पत्नी इमरजेंसी वार्ड  में हैं।   

कुसूर वार वह थप्पड़ ही था।


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