5.0 out of 5 starsVerified Purchase ब्यूरोक्रेसी का बिगुल और शहनाई प्यार की Reviewed in India on 29 June 2021at amazon.com
SP Gautam
5.0 out of 5 starsVerified Purchase
ब्यूरोक्रेसी का बिगुल और शहनाई प्यार की
Reviewed in India on 29 June 2021
अनिल गांधी के उपन्यास 'ब्यूरोक्रेसी का बिगुल...' में पचास पेज के बाद घटनाक्रम इस कदर हिचकोले मारता है कि आप अगला पृष्ठ पढने के लिए तत्पर रहते हैं।बस इसीलिए मैंने इसे दस दिनों में पढ डाला।ये पुस्तक अवर्ण-सवर्ण के बीच की खाई और हीनभावना को ही नहीं बल्कि स्वयं आरक्षित वर्ग के बीच पसरे भेदभाव शोषण और असुरक्षा की तमाम परते खोलता है।मुख्य किरदार,- नील सोनी और अलका आर्य नदी के दो छोर हैं। नील एक रंगकर्मी है और अलका आर्य दलित वर्ग से ऊँचे औदे वाली अफ़सरानी है।
ज्वार -भाटा से रागात्मक संबंध कब एक सुनामी में बदल जाएं ,'ताऊ -ते' या 'कैटरीना' हो जाएं इसका कोई निश्चय नहीं। नील परम्परा-बद्ध लेखन की तरह है तो अलका छंद मुक्त कविता से लेकर नै कविता,हाइकु से लेकर क्षणिका तक एक साथ सब कुछ है। कब बैलाड , आलाऊदल की तरह वीर-गाथा बन जाए हल्दी घाटी हो जाए इसकी भी कोई प्रागुक्ति नहीं कर सकता।
उपन्यास के अंदर एक अंडरकरेंट है अंतर् धारा है। सतह के बहुत नीचे जहां एक साथ थियेटर की प्रतिबद्धता और अनुशासन है ,साधन और साध्य का ऐक्य भी है तो अफसरी की बदमिज़ाजी और अहंकार भी है। और इसके के नीचे दबी कुचली एकल नारी की व्यथाकथा है निस्संगता और बेबसी है। लेकिन अफसरी उसके हाथ में ऐसा हथगोला है जिसे समाज के चील कौवो और गिद्धों पे दागने में वह ज़रा भी नहीं हिचकती। एक सामाजिक गुलेल से वह विपक्षी को कब निशाने पे ले ले, नील इससे बेहद आतंकित रहता है।
अलका एक उत्पीड़ित आहत बाघिन है जो बेहद आहत हुई है अपनों के हाथों।पैदाइशी लेबल से उबरने में उसका जीवट उसका मददगार बनता है। अलका के यहां जातिगत दलदल कभी भी बघनखे खोल के नर-सिंह अवतार ले सकती है। बड़े बड़ों को वह उनकी औकात, कद काठी बतलाने में ज़रा देर नहीं लगाती है,चाहे गाली-गलोज ही क्यों न करना पडे।लेकिन वह अंदर से टूटी हुई एक आधी अधूरी महिला है, जो सम्पूर्णता की तलाश में है।उसकी तलाश में साथ देते हुए पाठक इस मैराथन खेले में शुरू से लेकर आखिर तक सांस रोके रहता है। अन्तिम पृष्ठ तक उसे लगता रहता है ये नदी के दो कूल एक दूजे से कब,क्यों और कैसे मिल पाएंगे!
उपन्यास में यूं दर्ज़न भर से ज्यादा पात्र हैं जो ऑक्सिलरी मेडिसिन की तरह उद्दीपन और उद्दीपक की तरह कथा को आगे ठेल ने में मदद गार बनते हैं,कहीं कोई स्पीड ब्रेकर नहीं है उद्दाम आवेग है रागात्मक आलोड़न है। यहां ,उपन्यास पढ़ने से ताल्लुक रखता है सिर्फ एक मर्तबा नहीं बार -बार।
उल्लेखित समीक्षा amazon.com पर प्रकाशित है। उपन्यास ब्यूरोक्रेसी का बिगुल और शहनाई प्यार की अमेज़न.कॉम पर उपलब्ध है।
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