दुर्लभ संयोग है ये एक ही परिवार की तीन पीढ़ियां प्यार से बैठी हों परस्पर बतियाती कुछ सुनती हुई औरों की कुछ अपनी कहती सुनाती हुई
| 10:27 AM (21 minutes ago) | |||
दुर्लभ संयोग है ये एक ही परिवार की तीन पीढ़ियां प्यार से बैठी हों परस्पर बतियाती कुछ सुनती हुई औरों की कुछ अपनी कहती सुनाती हुई। ये मुमकिन है अक्सर हरियाणा के इस सीमान्त अंचल में जिसे नारनौल कहा जाता है। यह सम्भव है गए ज़माने के महेशियो (आज के महेश जी गौतम )के घर।
यहां छोटी बहु "तन्वी" प्यार से बड़ी बहुड़िया को दीदी कहती है। शिव रूप प्र-पौत्र सत्यम दादा (बाबा जी )को कहता है "टकला "बेहद प्यार के ऐसे मीठे बोल अब सुनाई ही कहाँ देते हैं।
यहां सासु- माँ "शांति जी" मौन का मूर्त रूप हैं। सत्यम अभिनय का सूत्रधार। प्राची मासूमियत का डेरा सच्चा सौदा दन्तावली में एक स्थान खाली है जो मुखमंडल की अप्रतिम शोभा है।
महेशजी का वही मुखर स्वर और मुखमंडल है जो गए ज़माने में अब से ४५ बरस पूर्व था अलबत्ता आवाज़ का घनत्व बढ़ गया है स्वर की मिठास भी। संवाद की शालीनता और शिष्टता भी।
कल का महेशियो बिंदास था कहीं बिठालो कहीं गवा लो -बेशक मस्जिद मंदिर .....प्यार भरा दिल कदी न तोड़ो इस दिल में .... दिलवर रहता
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बेहतरीन संयोग था सुरेंद्र भाई का भी यहां मौजूद होना और मुख़्तसर सी इस बैठकी को शिखर पर ले जाते हुए संतराम जी का आगमन और रत्नलाल जी की निहायत खामोश सी मौजूदगी।
आवभगत गौरवान्वित थी मुखर थी मूंगकी दाल का फरमाइशी चीला ,राम लड्डू ,बेसन के पकौड़े लस्सी और ग्रीन टी सब कुछ सबकी पसंदगी के अनुरूप तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक़। शिखर था संतराम जी की भक्तिरस से सराबोर जुगलबंदी रतनलाल जी के साथ जिसका आगाज़ स्वयं गौतम जी थे। गाया गवाया हमसे भी गया सुरेंद्र जी हाथ की कम्प को थामे रहे स्वर को टेका लगाते रहे।
ऐसे वक्फे नसीब से मयस्सर होते हैं। गौरवान्वित भी होता है व्यक्ति ये बूझकर बरसों बरस बाद वह आज भी कायम है किसी के चित्त में किसी के संगीत में।
नेहा कम पड़ जाएगा पात्र ज्यादा है मुखर वाक-प्रवीण तन्वी से लेकर सौम्य रेखा तक सत्यम से प्राची तक वाया शिवं शान्ति से लेकर शान्ताकुमारजी गौतम तक।
आदर एवं नेहा संग
वीरुभाई
(वीरेंद्र शर्मा )
#८७०/३१ ,भूतल ,निकट फरीदाबाद मॉडल स्कूल ,सेक्टर -३१ ,फरीदाबाद -१२१ ००३
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